तिनका कबहुँ ना निंदये जो पाँव तले होय मीनिंग Tinaka Kabahu Na Nindiye Meaning : Kabir Ke Dohe Ka Hindi Arth/Bhavarth
तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय,
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घनेरी होय॥
Tinaka Kabahu Na Nindiye, Jo Parvat Tale Hoy,
Kabahu Ud Aakho Pade, Peer Ghaneri Hoy.
Kabir Ke Dohe Hindi Meaning कबीर के दोहे का हिंदी अर्थ/भावार्थ
कबीर दास के इस दोहे का अर्थ यह है कि हमें किसी भी व्यक्ति की निंदा नहीं करनी चाहिए, चाहे वह छोटा या बड़ा हो, कमजोर या शक्तिशाली हो। इस दोहे में, कबीर दास एक छोटे से तिनके का उदाहरण देते हैं। जब तिनका हमारे पैरों के नीचे होता है, तो हम उसकी निंदा करते हैं। लेकिन जब वह तिनका हमारी आँख में चला जाता है, तो हमें बहुत पीड़ा होती है।
कबीर दास का मतलब यह है कि हम किसी भी व्यक्ति की निंदा करने से पहले सोचें कि अगर वह हमारे लिए नुकसानदेह हो गया तो क्या होगा। इस दोहे का एक अन्य अर्थ यह भी है कि हमें किसी भी व्यक्ति को कम नहीं आँखों में देखना चाहिए। चाहे वह कोई भी हो, हम उसे सम्मान से पेश आना चाहिए। तिनका पांवों के नीचे होता है लेकिन जब वह उड़कर आँखों में गिर जाता है तो बहुत अधिक कष्टकारक होती है. आशय है की कोई शक्तिशाली और कमजोर हो, सभी को सम भाव से व्यवहार करनी चाहिए.
कबीर दास का मतलब यह है कि हम किसी भी व्यक्ति की निंदा करने से पहले सोचें कि अगर वह हमारे लिए नुकसानदेह हो गया तो क्या होगा। इस दोहे का एक अन्य अर्थ यह भी है कि हमें किसी भी व्यक्ति को कम नहीं आँखों में देखना चाहिए। चाहे वह कोई भी हो, हम उसे सम्मान से पेश आना चाहिए। तिनका पांवों के नीचे होता है लेकिन जब वह उड़कर आँखों में गिर जाता है तो बहुत अधिक कष्टकारक होती है. आशय है की कोई शक्तिशाली और कमजोर हो, सभी को सम भाव से व्यवहार करनी चाहिए.