मास मास नहिं करि सकै छठे मीनिंग

मास मास नहिं करि सकै छठे मास अलबत हिंदी मीनिंग

मास मास नहिं करि सकै, छठे मास अलबत |
थामें ढ़ील न कीजिये, कहैं कबीर अविगत ||

Mas Mas Nahi Kari Sake, Chathe Mas Albat,
Thame Dheel Na Kijiye, Kahe Kabir Avigat.

मास मास नहिं करि सकै छठे मास अलबत हिंदी मीनिंग Mas Mas Nahi Kare Meaning

कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग अर्थ/भावार्थ

कबीर साहेब इस दोहे में संतों की महिमा को स्थापित करते हुए कहते हैं की संतों का सानिध्य और उनके दर्शन आवश्यक है। यदि साधू और संतजन का दर्शन प्रत्येक महीने में ना किया जाए, तो हर छठे महीने में तो करना ही चाहिए। आशय है की संतजन और साधू का दर्शन और सानिध्य पुन्य देती है पाप को काटता है। आवश्यक है की कुछ अन्तराल के उपरान्त संतों के दर्शन करने चाहिए। संत और साधू ही व्यक्ति को मायाजनित कार्यों से प्रथक करके भक्ति मार्ग पर साधक को अग्रसर करते हैं। इस दोहे में, कबीर दास जी संतों के दर्शन के महत्व पर प्रकाश डालते हैं। वे कहते हैं कि यदि कोई भक्त प्रति माह संतों के दर्शन नहीं कर सकता तो वह प्रति छह माह में कर ले। ऐसा करने से भी वह अपना जन्म सफल बना सकता है।

कबीरदास जी के अनुसार, संतों के दर्शन से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। संतों के पास ईश्वरीय ज्ञान है। उनके दर्शन से मनुष्य के हृदय से पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष प्राप्त होता है। आज के समय में, संतों के दर्शन करना उतना आसान नहीं है। संत दूर-दूर रहते हैं और उन तक पहुँचना मुश्किल होता है। लेकिन, अगर हम प्रति छह माह में भी संतों के दर्शन कर सकें तो यह हमारे जीवन के लिए बहुत लाभदायक होगा।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

Next Post Previous Post