मेरा मुझ में कुछ नहीं जो कुछ है सो तेरा मीनिंग Mera Mujh Me Kuch Nahi Meaning : kabir ke dohe Ka Hindi Arth/Bhavarth
मेरा मुझ में कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा।
तेरा तुझकौं सौंपता, क्या लागै है मेरा॥
Mera Mujh Me Kuch Nahi, Jo Kuch Hai So Tera,
Tera Tujhko Soupta, Kya Lage hai Mera.
कबीर के दोहे का हिंदी में अर्थ / भावार्थ Kabir Doha Hindi Meaning
इश्वर के प्रति समर्पण को दिखाते हुए कबीर साहेब की वाणी है की मेरा मुझ में कुछ भी नहीं है, यह मानव जीवन और भौतिक वस्तुएं भी हमारी नहीं हैं। जो कुछ भी है वह आपका, इश्वर का ही है। तेरा ही मैंने तुझसे लिया है और मैं तुझको ही सौंपता हूँ इसमें मेरा क्या लगता है। जो कुछ भी है वह आपका ही है।
इस दोहे में कबीर साहेब साधक के माध्यम से इश्वर के प्रति समर्पण और दास्य भाव का प्रदर्शन कर रहे हैं। जीवन में जो कुछ भी जीवात्मा प्राप्त करती है वह इश्वर का ही दिया है। इसमें वह अपने अहम् को छोड़कर हरी का दिया हरी को ही सौंपने का भाव रखती है जिसमे कोई अहम नहीं है। संत कबीर दास जी के इस दोहे में वे आत्म-साक्षात्कार की बात कर रहे हैं। आत्म-साक्षात्कार का अर्थ है स्वयं को जानना, स्वयं के मूल को जानना। कबीर दास जी कहते हैं कि जब हम आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर लेते हैं, तो हम यह समझ पाते हैं कि हमारा कोई भी अस्तित्व नहीं है। हम केवल एक झलक हैं, एक क्षण हैं। यह सारा संसार ईश्वर का ही है। हम सब ईश्वर के ही अंश हैं। पहले चरण में कबीर दास जी कहते हैं कि "मेरा मुझ में कुछ नहीं"। इसका अर्थ है कि हमारे पास स्वयं का कुछ भी नहीं है। हम जो भी हैं, वह सब ईश्वर की देन है। हमारा शरीर, हमारा मन, हमारे विचार, हमारी भावनाएं, सब कुछ ईश्वर का है।
इस दोहे में कबीर साहेब साधक के माध्यम से इश्वर के प्रति समर्पण और दास्य भाव का प्रदर्शन कर रहे हैं। जीवन में जो कुछ भी जीवात्मा प्राप्त करती है वह इश्वर का ही दिया है। इसमें वह अपने अहम् को छोड़कर हरी का दिया हरी को ही सौंपने का भाव रखती है जिसमे कोई अहम नहीं है। संत कबीर दास जी के इस दोहे में वे आत्म-साक्षात्कार की बात कर रहे हैं। आत्म-साक्षात्कार का अर्थ है स्वयं को जानना, स्वयं के मूल को जानना। कबीर दास जी कहते हैं कि जब हम आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर लेते हैं, तो हम यह समझ पाते हैं कि हमारा कोई भी अस्तित्व नहीं है। हम केवल एक झलक हैं, एक क्षण हैं। यह सारा संसार ईश्वर का ही है। हम सब ईश्वर के ही अंश हैं। पहले चरण में कबीर दास जी कहते हैं कि "मेरा मुझ में कुछ नहीं"। इसका अर्थ है कि हमारे पास स्वयं का कुछ भी नहीं है। हम जो भी हैं, वह सब ईश्वर की देन है। हमारा शरीर, हमारा मन, हमारे विचार, हमारी भावनाएं, सब कुछ ईश्वर का है।