कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग सहित कबीर के दोहे

कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग सहित Kabir Ke Dohe With Hindi Meaning Hindi Arth Sahit

 
कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग सहित Kabir Ke Dohe With Hindi Meaning Hindi Arth Sahit

कबिरा कलह अरु कल्पना , सतसंगति से जाय ।
दुःख बासे भागा फिरै , सुख में रहै समाय ।।
 
Kabira Kalah Aru Kalpana , Satasangati Se Jaay .
Duhkh Baase Bhaaga Phirai , Sukh Mein Rahai Samaay .. 

दोहे का हिंदी अनुवाद : कलह और कल्पना सत्संगति से दूर होती हैं, ऐसा व्यक्ति जो सत्संगति में रहता है उसे किसी प्रकार का दुःख नहीं होता है और वह सदा ही सुख में रहता है।

ऊँचे कुल में जनमिया , करनी ऊँच न होय ।
सबरं कलस सुराभरा , साधू निन्दा सोय ।।
 
Oonche Kul Mein Janamiya , Karanee Oonch Na Hoy .
Sabaran Kalas Suraabhara , Saadhoo Ninda Soy .. 

दोहे का हिंदी अनुवाद : ऊँचे कुल, ऊँची जाति में जन्म लेने से कोई ऊँचा नहीं होता है, यदि सोने के कलश में सूरा(शराब ) भरी हुई है तो वह नि निंदनीय ही है।
 
संत समागम परम सुख , जानअल्प सुख और ।
मान सरोवर हंस है, बगुला ठौरे ठौर ।।
 
Sant Samaagam Param Sukh , Jaanalp Sukh Aur .
Maan Sarovar Hans Hai, Bagula Thaure Thaur ..


दोहे का हिंदी अनुवाद : संत का समागम परम सुख की भाँती होता है, इसके समक्ष संसार के सभी सुख अल्प और महत्वहीन होते है, हंस सदा ही मानसरोवर में ही होते हैं और बगुले यहाँ वहां हर जगह पर दिखाई दे जाते हैं। भाव है की संसार में गुणीजन कम होते हैं और माया के जाल में फंसे हुए अधिक होते हैं।

चंदन रुख बिदेस गयौ , जन जन कहै पलास ।
ज्यौं - ज्यौं चूल्है झोंकिया , त्यौं त्यौं दूनी बास ।।
 
दोहे का हिंदी अनुवाद : चन्दन का वृक्ष विदेश गया और वहां पर उसे पलास समझ लिया गया, क्योंकि उस क्षेत्र में चन्दन उपलब्ध नहीं था, वे चंदन के बारे में जानते ही नहीं थे। जब उसे चूल्हे में झौंका गया तो उसके गुणों के बारे में बोध हुआ। दुसरे अर्थों में जब चन्दन/मानव शरीर को खो दिया जाता है तब कहीं जाकर उसे मानव जीवन के महत्त्व के बारे में बोध होता है। सहज रूप से मानव जीवन के महत्त्व को समझ पाना बड़ा ही मुश्किल होता है।

बोली हमारी पूरबी, हमको लखे न कोय।
हमको तो सोई लखे, जो पूरब का होय।।
 
दोहे का हिंदी अनुवाद : हमारी बोली पूरब की है जिसे समझ पाना बड़ा ही मुश्किल है ऐसे ही गुरु ज्ञान की पहचान कर पाना मुश्किल है। इसके साथ ही कबीर के विविध भाषा सबंधी ज्ञान का भी पता चलता है।

पैडे मोती बिखरया, अँधा निकस्या आय।
जोति बिनां जगदीस की, जगत उलन्घ्या जाय।।
 
दोहे का हिंदी अनुवाद : जीवन में भक्ति ज्ञान रूपी मोती बिखरे हुए हैं, अज्ञानी और अंधे लोग हीरे को छोडकर आगे बढ़ जाते हैं, उसके महत्त्व को समझ नहीं पाते हैं। इस दोहे में रुप्कतिश्योक्ति अलंकार का उपयोग गुआ है।

कबीर यहु जग अंधला,जैसी अंधी गाइ ।
बछा था सो मरि गया,अभी चांम चटाइ ।।
 
दोहे का हिंदी अनुवाद : समस्त जीव नश्वर वस्तुओं के प्रति आकर्षण रखते हैं जैसे की गाय बछड़े के मर जाने के बाद भी अपना मोह त्याग नहीं पाती है और उसकी मरी हुई चमड़ी को चाटती रहती है। भाव है की जीव को मोह माया से दूर रहकर ईश्वर सुमिरण में ही अपना चित्त लगाना चाहिए।

जब गुण कूं गाहक मिलै,तब गुण लाख बिकाइ ।
जब गुण कौं गाहक नहीं,तब कौड़ी बदलै जाइ ॥
 
दोहे का हिंदी अनुवाद : गुण के ग्राहक होने पर ही उसकी कीमत होती है, जैसे हीरे की पहचान जौहरी को होती है, पारखी के बगैर कीमती वस्तु भी कौड़ी बन जाती है । गुणों की कीमत पहचानने वाला होने पर वह लाखों में बिकता है ।

कबीर लहरि समंद की,मोती बिखरे प्राइ ।
बगुला मंझ न जांणई, हंस चुणे चुणि खाइ ॥
 
दोहे का हिंदी अनुवाद : समुद्र की लहर आने पर मोती किनारों पर बिखर जाते हैं, बगुला मोतियों के महत्त्व को समझ नहीं सकता है, हंस मोतियों के महत्त्व को समझ कर उनको प्राप्त कर लेता है और बगुला उनको समुद्र के झाग समझ कर उन्हें प्राप्त नहीं करता है। हंस से अभिप्राय है शुद्ध परमात्मा और बगुले से आशय है की मोह माया के जाल में फंसी हुई आत्मा।

हरि हीरा जन जौहरी,ले ले मांडिय हाटि ।
जबर मिलैगा पारिषू, तब हीरां की साटि ॥
 
दोहे का हिंदी अनुवाद : पारखी व्यक्ति ही भगवान् को प्राप्त कर पाता है, हरी हीरे के समान है और सामान्य मानव में पहचान कर सकने वाला जौहरी है, यह एक प्रकार का बाजार है, पारखी जीव ही हीरे की कद्र कर पाता है और उसके महत्त्व को समझता है।

नांव न जांणों गांव का, मांरगि लागा जांउं ।
काल्हि जु काटां भाजिसी, पहिली क्यूं न खड़ांउं ॥ 
 
दोहे का हिंदी अनुवाद : जिस मार्ग पर जाना है उसका अनुसरण करना करना है, यह मार्ग गुरु के द्वारा बताया गया है, निर्दिष्ट किया गया है। इस मार्ग पर आज नहीं तो कल चलना ही है, तो क्यों नन्हीं पहले ही इस मार्ग का अनुसरण कर लिया जाए। भक्ति मार्ग पर जितना जल्दी हो सके उतना ही अच्छा है और इसमें विलम्ब करना ठीक नहीं है। साधना में तत्काल अग्रसर होना ही लाभकारी होता है।

सीष भई संसार थे,चले जु सांईं पास ।
अबिनासी मोहि ले चल्या, पुरई मेरी आस ॥
 
दोहे का हिंदी अनुवाद : जब जीवात्मा पूर्ण परमात्मा से मिलने के लिए जाती है, साईं के पास जाती है, अविनाशी मुझे (जीवात्मा) को लेकर चली है और मेरी आशा पूर्ण हो चुकी है। जीवात्मा रूपी दुल्हन इस संसार से विदा होकर चली है, जिसमे व्यंजना है और इसमें रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है।


जांमण मरण बिचारि करि कूड़े काम निबारि ।
जिनि पंथूं तुझ चालणा सोई पंथ संवारि ॥
 
दोहे का हिंदी अनुवाद : मनुष्य जनम बहुत ही प्रयत्नों के उपरान्त प्राप्त होता है, प्राप्त होता है अतः जीवन को समझना चाहिए, जनम मरण के चक्र और आवागमन को समझना चाहिए और कूड़े कर्म, बुरे और अनैतिक कार्यों से दूर रहकर सत्य के मार्ग का अनुसरण करना चाहिए और उसी मार्ग को संवारना चाहिए जो हमें मुक्ति की तरफ ले जाता है। पंथ संवारने से आशय है की उसी मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।
 
बिन रखवाले बाहिरा चिड़िये खाया खेत ।
आधा परधा ऊबरै, चेती सकै तो चेत ॥
 
दोहे का हिंदी अनुवाद : मनुष्य के देह एक खेत के समान है जिसमे यदि रखवाली नहीं की जाए तो विषय, विकार रूपी चिड़िया खेत को उजाड़ देते हैं और कोई आधा परदा (बहुत कम) ही पैदावार होती है, अतः इस विषय पर चिन्तन की आवश्यकता है। भक्ति मार्ग पर चलते हुए मोह माया जनित विकारों से दूर रहने की आवश्यकता है जिससे यह दुर्लभ मानुष जूनी को सार्थक किया जा सके।
 
कलि का स्वामी लोभिया, पीतलि धरी षटाइ ।
राज दुवारां यौं फिरै, ज्यूँ हरिहाई गाइ॥
 
दोहे का हिंदी अनुवाद : कलियुग का स्वामी और सन्यासी दोनों ही माया की तरफ दौड़ते हैं, राज दुवारे, शासक के दर पर ऐसे भागते हैं जैसे कोई गाय हरे के लोभ में आकर खेतों की तरफ बार बार मुख करती है। ऐसी ही कलियुग में पूजा पाठ करने वाले और स्वंय को सन्यासी बताने वाले भी माया से दूर नहीं रह पाते हैं और लोभासक्त होकर धनवानों के दरवाजों पर पंहुच ही जाते हैं। 
 
कलि का स्वांमी लोभिया,मनसा धरी बधाइ ।
दैं हि पईसा व्याज कौं, लेखां करतां जाइ॥
 
दोहे का हिंदी अनुवाद : कलयुग के सन्यासी और विरक्त हो चुके लोग भी कलियुग के प्रभाव में आ चुके हैं, माया के कारण वे अपन धन को ब्याज पर देते हैं और इसी से सबंधित लेखा करने में लगे रहते हैं। ऐसे लोग अपने मन को अधिक बढ़ा कर माया में जोड़ लेते हैं।

कबीर कलि खोटी भइ,मुनियर मिलै न कोइ।
लालच लोभी मसकरा,तिनकू श्रादर होइ॥
 
दोहे का हिंदी अनुवाद : कलियुग में लोभी और मनचले लोग ही सम्मान के पात्र होते हैं, कलियुग में मुनिवर जन कोई भी नहीं होता है, इसीलिए कलयुग बहुत ही खोटा है इसमें कोई श्रेष्ठ मुनिजन और ज्ञानी नहीं होता है, इसमें लालची और लोभी-मनचले लोग ही सम्मान को प्राप्त करते हैं।
 
चारिऊँ वेद पढ़ाइ करि,हरि सूँ न लाया हेत।
वालि कबीरा ले गया,पणिडत ढूँढै खेत ॥
 
दोहे का हिंदी अनुवाद : पौँगा पंडितों पर व्यंग्य है की चारों वेद (धार्मिक ग्रन्थ) पढकर भी पंडित लोग खेत को को ढूंढते हैं, अन्न की तलाश में रहते हैं, दुसरे अर्थों में भक्ति रूपी खेत की फसल को कबीर साहेब ले जाते हैं और व्यर्थ के कूड़े को पंडित लोग खेतों में ढूंढते हैं। ईश्वर भक्ति का रस तो तत्वज्ञानी लेते हैं और बाकि लोग व्यर्थ के अपशिष्ट प्रदार्थों का ही संग्रह करने में लगे रहते हैं।
 
व्राहाण गुरु जगत का, साधू का गुरु नाहि ।
उरभ्फि-पुरभ्फि करि मरि रह या,चारिउँ वेदां माहिं ॥
 
दोहे का हिंदी अनुवाद : ब्राह्मण जगत का गुरु हो सकता है, ऐसे जगत का जो तत्व ज्ञान से दूर हैं। ब्राह्मण कभी भी साधू का गुरु नहीं बन सकता है क्योंकि साधू प्रेम के माध्य्म्म से, सत्य की राह का अनुसरण करके ईश्वर की खोज करता है, ईश्वर की प्राप्ति करता है लेकिन ब्राह्मण तो अपने चारों वेदों में ही उलझा पड़ा रहता है, उन्हें ही उलट पुलट करके ना जाने उनमें क्या खोजता रहता है और वह इसी उधेड़ बुन में स्वंय के जीवन को समाप्त कर लेता है। प्रेम, सद्भाव, सद्मार्ग, मानवता कुछ ऐसे गुण हैं जो साधू में होते हैं, ऐसे लोग तत्वज्ञानी होते हैं जो सही अर्थों में ईश्वर से मिलाप करने में सक्षम होते हैं।

साषित सण का जेवड़ा,भीगां सूँ कठठाइ ।
दोइ श्राषिर गुरु बाहिरा,बांध्या जमपुर जाइ॥
 
दोहे का हिंदी अनुवाद : शाक्य सम्प्रदाय के अनुयाई सन (मुंझ) की रस्सी के सम्मान होते हैं जो भीगने अपर और अधिक कस जाती है, कड़ी हो जाती है। ऐसे ही शाक्य लोग भी सांसारिकता में अधिक आनंद लेने लगते हैं और दो अक्षरों के नाम, राम से दूर होते हैं और गुरु के वचनों के अभाव में बंधकर यमलोक ले जाया करते हैं। ऐसे जीवों को यमलोक बांधकर अपने साथ ले जाता है।
 
पंडित सेती कहि रहूया,भीतरि भेध नाहिं ।
श्रोरूँ कौ परमोधतां,गया मुहरकां मांहिं ॥
 
दोहे का हिंदी अनुवाद : पंडित लोगों को उपदेस देने में ही लगा रहता है और उसने स्वंय ने कोई तत्व ज्ञान की प्राप्ति नहीं की है। वह जो ज्ञान लोगों को बांटता है वह उसके हृदय में नहीं होता है, वह स्वंय उस ज्ञान का अनुसरण नहीं करता है, ऐसे पाखंडी पंडित का अंत दुखद होता है।

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