कबीर माया पापणीं हरि सूँ करे हराम हिंदी मीनिंग Kabir Maya Papini Meaning : kabir Ke Dohe Ka Hindi Arth/Bhavarth
कबीर माया पापणीं, हरि सूँ करे हराम।
मुखि कड़ियाली कुमति की, कहण न देई राम॥
Kabir Maya Papini, Hari Su Kre Haram,
Mukhi Kadiyali Kumati Ki, Kahan Na Dei Ram
कबीर के दोहे का हिंदी में अर्थ / भावार्थ Kabir Doha Hindi Meaning
माया के प्रभाव को समझाते हुए कबीर साहेब सन्देश देते हैं की माया पापिनी है, वह जीवात्मा को इश्वर से दूर करती है। वह जीवात्मा के मुख पर दुर्बुधि की कुण्डी लगा देती है और माया ही व्यक्ति को राम नाम जपने से रोकती है। अतः माया के दुष्प्रभाव को समझने की आवश्यकता है। संत कबीर दास जी के इस दोहे में वे माया की बुराइयों के बारे में बता रहे हैं। वे कहते हैं कि माया एक बड़ी पापिन है। माया जीवात्माँ को परमात्मा से विमुख कर देती है और उन्हें सांसारिक मोह-माया में फंसा देती है। पहले चरण में कबीर दास जी कहते हैं कि "माया पापणीं"। इसका अर्थ है कि माया एक पापी है। यह हमें बुरे कामों में लिप्त कर देती है।
दूसरे चरण में कबीर दास जी कहते हैं कि "हरि सूँ करे हराम"। इसका अर्थ है कि माया हमें परमात्मा से विमुख कर देती है। यह हमें सांसारिक मोह-माया में इतना डुबो देती है कि हम परमात्मा को भूल जाते हैं। तीसरे चरण में कबीर दास जी कहते हैं कि "मुखि कड़ियाली कुमति की, कहण न देई राम"। इसका अर्थ है कि माया हमारे मुख पर दुर्बुद्धि की कुंडी लगा देती है। यह हमें राम-नाम का जप करने से रोक देती है।
दूसरे चरण में कबीर दास जी कहते हैं कि "हरि सूँ करे हराम"। इसका अर्थ है कि माया हमें परमात्मा से विमुख कर देती है। यह हमें सांसारिक मोह-माया में इतना डुबो देती है कि हम परमात्मा को भूल जाते हैं। तीसरे चरण में कबीर दास जी कहते हैं कि "मुखि कड़ियाली कुमति की, कहण न देई राम"। इसका अर्थ है कि माया हमारे मुख पर दुर्बुद्धि की कुंडी लगा देती है। यह हमें राम-नाम का जप करने से रोक देती है।