प्रेम न खेतौं नीपजै प्रेम न दृष्टि बिकाइ मीनिंग

प्रेम न खेतौं नीपजै प्रेम न दृष्टि बिकाइ हिंदी मीनिंग

प्रेम न खेतौं नीपजै, प्रेम न दृष्टि बिकाइ।
राजा परजा जिस रुचै, सिर दे सो ले जाइ॥ 

Prem Na Kheto Neepaje, Prem Na Drishti Bikai,
Raja Paraja Jis Ruche Sir De So Le Jai.
 
प्रेम न खेतौं नीपजै प्रेम न दृष्टि बिकाइ हिंदी मीनिंग Prem Na Kheto Neepaje Meaning

कबीर के दोहे का हिंदी में अर्थ भावार्थ

कबीर साहेब इस दोहे में सन्देश देते हैं की प्रेम (भक्ति) खेतों में पैदा नहीं होती है। यह आत्मिक विषय है। प्रेम किसी बाजार में भी नहीं बिकती है जिसे धन दौलत के बल पर कोई भी खरीद ले। राजा (धनवान) प्रजा (सामान्य जन ) जिसे भी यह पसंद हो, रुचिकर लगे वह उसे अपना शीश देकर (अभिमान को त्यागकर) इसे प्राप्त कर सकता है। आशय है की कबीर साहेब स्पष्ट रूप से भक्ति को व्यक्तिगत रूप से प्राप्त किया जा सकता है। इस साखी में, कबीर साहेब कहते हैं कि प्रेम एक अमूल्य वस्तु है। यह किसी खेत में उगाया नहीं जाता और न ही इसे किसी बाजार में खरीदा या बेचा जा सकता है। कबीर साहेब कहते हैं कि प्रेम, एक आंतरिक अनुभव है। यह मनुष्य के हृदय में उत्पन्न होता है। 
 
इसे किसी बाह्य वस्तु या व्यक्ति से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। कबीर साहेब कहते हैं कि प्रेम, किसी जाति या वर्ग का भेद नहीं मानता है। राजा हो या प्रजा, जो भी प्रेम को प्राप्त करना चाहता है, वह अपना सिर देकर भी उसे प्राप्त कर सकता है। भावार्थ है की कबीर दास जी कहते हैं कि प्रेम कहीं खेतों में नहीं उगता, पैदा होता है। प्रेम तो आत्मिक विषय है। प्रेम तो कभी भी बाजार में भी नहीं बिकता है। जिसे भी प्रेम चाहिए उसे क्रोध काम, इच्छा, भय त्यागना ही होगा तभी प्रेम प्राप्त किया जा सकता है।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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