भक्ति पदारथ तब मिलै तब गुरु होय सहाय हिंदी मीनिंग Bhakti Padarath Hindi Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth
भक्ति पदारथ तब मिलै, तब गुरु होय सहाय |प्रेम प्रीति की भक्ति जो, पूरण भाग मिलाय ||
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
इस दोहे में कबीरदास जी ने भक्ति की प्राप्ति के लिए गुरु और पुरुषार्थ की महत्ता को बताया है, कबीर साहेब भक्ति को अत्यंत ही अमूल्य वस्तु कहते है और सन्देश देते हैं की भक्ति रूपी अमूल्य प्रदार्थ तभी प्राप्त होता है जब गुरु सहाय करते हैं, सहायता करते हैं। प्रेम - प्रीति से परिपूर्ण भक्ति तभी प्राप्त होती है जब भक्त गुरु शरण में जाए और पुरुषार्थरुपी पूर्ण भाग्योदय को प्राप्त करे. भक्तिरूपी अमूल्य वस्तु तब मिलती है जब यथार्थ सतगुरु मिलें और उनका उपदेश प्राप्त हो, तभी मिल पानी संभव हो पाती है, प्रेम के अभाव में, गुरु के सानिध्य के अभाव में भक्ति को प्राप्त नहीं किया जा सकता है.
सतगुरु ही हमें सत्य ज्ञान प्रदान करता है, और भक्ति के गूढ़ रहस्य के बारे में सरलता से समझाता है। जब हम किसी सच्चे गुरु से मिलते हैं, तो वे हमें भक्ति का सही मार्ग बताते हैं। वे हमें भक्ति की विधि सिखाते हैं और हमें भक्ति करने के लिए प्रेरित करते हैं। पुरुषार्थ का अर्थ है अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करना। जब हम भक्ति में पुरुषार्थ करते हैं, तो हम उसे प्राप्त कर सकते हैं।
कबीरदास जी कहते हैं कि जो भक्ति प्रेम और प्रीति से पूर्ण होती है, वह पूर्ण भाग्योदय से मिलती है, यह तभी संभव होता है जब हमें गुरु की शरण मिले। जब हम भक्ति को प्रेम और श्रद्धा से करते हैं, तो हमें भक्ति की प्राप्ति होती है और हम अंततः मोक्ष को प्राप्त कर पाते हैं। इस दोहे का संदेश यह है कि हमें भक्ति में निरंतर लगे रहना चाहिए। हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए। भाग्योदय तभी होगा जब हम किसी सच्चे गुरु के सानिध्य को प्राप्त करेंगे.
सतगुरु ही हमें सत्य ज्ञान प्रदान करता है, और भक्ति के गूढ़ रहस्य के बारे में सरलता से समझाता है। जब हम किसी सच्चे गुरु से मिलते हैं, तो वे हमें भक्ति का सही मार्ग बताते हैं। वे हमें भक्ति की विधि सिखाते हैं और हमें भक्ति करने के लिए प्रेरित करते हैं। पुरुषार्थ का अर्थ है अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करना। जब हम भक्ति में पुरुषार्थ करते हैं, तो हम उसे प्राप्त कर सकते हैं।
कबीरदास जी कहते हैं कि जो भक्ति प्रेम और प्रीति से पूर्ण होती है, वह पूर्ण भाग्योदय से मिलती है, यह तभी संभव होता है जब हमें गुरु की शरण मिले। जब हम भक्ति को प्रेम और श्रद्धा से करते हैं, तो हमें भक्ति की प्राप्ति होती है और हम अंततः मोक्ष को प्राप्त कर पाते हैं। इस दोहे का संदेश यह है कि हमें भक्ति में निरंतर लगे रहना चाहिए। हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए। भाग्योदय तभी होगा जब हम किसी सच्चे गुरु के सानिध्य को प्राप्त करेंगे.
"भक्ति पदारथ तब मिलै, तब गुरु होय सहाय" - भक्तिरूपी अमोलक वस्तु तब मिलती है जब यथार्थ सतगुरु मिलें और उनका उपदेश प्राप्त हो, भक्ति की गूढ़ बातों से परिचय हो। सतगुरु ही हमें भक्ति का मार्ग दिखा सकते हैं और सांसारिकता/माया से विमुख कर सकते हैं। वे हमें भक्ति के महत्व और प्राप्ति के तरीके के बारे में बता सकते हैं।
"प्रेम प्रीति की भक्ति जो, पूरण भाग मिलाय" - जो प्रेम-प्रीति से पूर्ण भक्ति है, वह पुरुषार्थरुपी पूर्ण भाग्योदय से मिलती है। भक्ति में प्रेम और प्रीति का होना आवश्यक है। जब हम ईश्वर से प्रेम करते हैं और ईश्वर से प्रीति करते हैं, तो हमें पूर्ण भक्ति प्राप्त होती है। इस प्रकार, इस दोहे में कबीर साहेब भक्ति के महत्व और प्राप्ति के मार्ग पर प्रकाश डालते हैं। वे कहते हैं कि हमें भक्ति के लिए एक सच्चे गुरु की तलाश करनी चाहिए और उनके मार्गदर्शन में भक्ति का अभ्यास करना चाहिए।