भक्ति बीज पलटै नहीं जो जुग जाय अनन्त हिंदी मीनिंग Bhakti Beej Palate Nahi Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth
भक्ति बीज पलटै नहीं, जो जुग जाय अनन्त |ऊँच नीच घर अवतरै, होय सन्त का सन्त ||
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
इस दोहे में कबीरदास जी ने भक्ति की महिमा और उसके प्रभाव को बताते हुए कहते हैं की भक्ति का बीज पलटता नहीं है, भले ही वह सांसारिक अर्थ में किसी नीच के या उच्च कुल में पैदा हो जाए. वह तो संत का संत ही रहता है, आशय है की उसकी विचारधारा में कोई परिवर्तन नहीं होता है. आगे कबीर साहेब कहते हैं की जो व्यक्ति भक्ति करता है, उसकी भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती, भले ही युग बीत जाएं। भक्ति के बीज अनंत काल तक फलते-फूलते रहते हैं और उनका फलन स्पष्ट रूप से सार्थक ही होता है। भक्ति का अर्थ है ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण। जब कोई व्यक्ति ईश्वर के प्रति सच्चे मन से भक्ति करता है, तो उसके मन में ईश्वर के प्रति प्रेम और श्रद्धा बढ़ती जाती है। वह ईश्वर के मार्ग पर चलने लगता है और अपने जीवन को ईश्वर के लिए समर्पित कर देता है।
कबीरदास जी कहते हैं कि भक्ति के बीज निष्फल नहीं होते। भले ही भक्त ऊँच या नीच किसी भी वर्ण या जाति में जन्म ले, लेकिन उसकी भक्ति उसे सच्चे संत की राह पर ले जाती है, वह सदा ही नेक विचारों का व्यक्ति होता है और हरी के नाम का सुमिरन करता है। इस दोहे में कबीर साहेब भक्ति के महत्व पर प्रकाश डालते हैं। वे कहते हैं कि भक्ति के बीज निष्फल नहीं होते, चाहे अनंत युग बीत जाएं। भक्तिमान व्यक्ति, चाहे वह किसी भी वर्ण या जाति से ताल्लुक रखता हो, सन्त का सन्त ही रहता है।
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