चिन्तामनि चित में बसै सोइ चित्त में आनि मीनिंग Chintamani Chitt Me Base Meaning

चिन्तामनि चित में बसै सोइ चित्त में आनि मीनिंग Chintamani Chitt Me Base Meaning : Hindi Arth/Bhavarth

चिन्तामनि चित में बसै, सोइ चित्त में आनि
बिना प्रभु चिन्ता करै, यह मूरख का बानि
 
Chintamani Chitt Me Base, Soi Chitt Me Aani,
Bina Prabhu Chinta Kare, Yah Murakh Ka Bani.
 
चिन्तामनि चित में बसै सोइ चित्त में आनि मीनिंग Chintamani Chitt Me Base Meaning

कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi

इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि परमात्मा ही चिंतामणि हैं, अर्थात् वे सभी की चिंताओं को दूर करने वाले हैं। वे हमारे चित में ही बसते हैं। इसलिए हमें अपने जीवन की चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। हमें केवल परमात्मा का स्मरण करना चाहिए और उनकी भक्ति में लीन रहना चाहिए। कबीरदास जी कहते हैं कि जो लोग परमात्मा का स्मरण नहीं करते और अपने जीवन की चिंता करते हैं, वे मूर्ख हैं। वे माया में फंस गए हैं और उन्हें समझ नहीं आता कि परमात्मा ही सभी समस्याओं का समाधान है। अंततः, इस दोहे का संदेश यह है कि हमें परमात्मा का स्मरण करना चाहिए और उनकी भक्ति में लीन रहना चाहिए। इससे हम अपने जीवन की सभी समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं।

आज भी लोग धन और वैभव के पीछे भाग रहे हैं। वे भौतिक सुखों को ही जीवन का लक्ष्य मानते हैं।
ऐसे लोग परमात्मा का स्मरण नहीं करते और अपने जीवन की चिंता करते हैं। वे माया के जाल में फंस गए हैं।
वास्तव में, परमात्मा ही हमारे जीवन का वास्तविक लक्ष्य है। हमें उनकी भक्ति में लीन रहना चाहिए और उनके द्वारा दिए गए सभी सुखों का आनंद लेना चाहिए। इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें परमात्मा का स्मरण करना चाहिए और उनकी भक्ति में लीन रहना चाहिए। इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि परमात्मा, जो सभी की चिंता करते हैं, वे हमारे हृदय में निवास करते हैं। जो लोग परमात्मा का स्मरण नहीं करते और केवल अपने जीवन की चिंता करते हैं, वे मूर्ख हैं।

दोहे के पहले दो शब्द "चिन्तामनि चित में बसै" का अर्थ है कि चिंतामणी परमात्मा। कबीरदास जी कहते हैं कि परमात्मा, जो सभी की चिंता करते हैं, उन्हें चिंतामणी कहा जाता है। दोहे के दूसरे दो शब्द "सोइ चित्त में आनि" का अर्थ है कि उसे अपने हृदय में लाओ। कबीरदास जी कहते हैं कि हमें परमात्मा का स्मरण अपने हृदय में लाना चाहिए। दोहे के अंतिम दो शब्द "बिना प्रभु चिन्ता करै, यह मूरख का बानि" का अर्थ है कि बिना परमात्मा के चिंता करना मूर्खता है। कबीरदास जी कहते हैं कि जो लोग परमात्मा का स्मरण नहीं करते और केवल अपने जीवन की चिंता करते हैं, वे मूर्ख हैं।
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