हरिजन गांठि न बाधहीं उदर समाना लेय Harijan Ganthi Na Bandhahi Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth
हरिजन गांठि न बाधहीं, उदर समाना लेयआगे पीछे हरि खड़े, जो मांगै सो देय
Harijan Ganth Na Bandhahi, Udar Samana Ley,
Aage Peechhe hari Khade, Jo Mange So Dey.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
कबीर साहेब हरिजन, इश्वर के भक्त (साधक) के बारे में बताते हैं की वह कभी लालची/लोभी नहीं होता है. वह अपने मालिक पर यकीन करता है और संतुष्ट ही रहता है. आगे कबीर साहेब कहते हैं की वह भला क्यों किसी से मांगे, क्यों वह संग्रह करे (गांठी बाँधने से आशय संग्रह करने से है ) क्योंकि उसे जब जरूरत पड़ती है उसे स्वंय इश्वर ही देने को आते हैं. उसके आगे पीछे तो स्वंय इश्वर देने के लिए खड़े रहते हैं. इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि जो लोग सच्ची भक्ति करते हैं, वे धन के लोभ में नहीं पड़ते हैं और माया को समझ कर मायाजनित व्यवहार से दूर रहते हैं। वे अपनी भक्ति में इतना लीन होते हैं कि उन्हें धन-संपत्ति की कोई चिंता नहीं रहती है। उन्हें पता होता है कि परमात्मा ही उनकी सभी जरूरतों को पूरा करेगा। वे अपने जीवन यापन करने योग्य वस्तुओं और साधनों का ही संग्रह करते हैं.आशय है की भक्ति मार्ग में आगे बढ़ने के लिए व्यक्ति को कभी भी माया जनित व्यवहार नहीं करना चाहिए. सांसारिक धन दौलत कभी साथ नहीं जाने वाली हैं. एक रोज सभी को इस संसार को छोड़ कर जाना है। अतः यदि साधक धन दौलत और मोह माया में पड़ा रहता है तो उसके जीवन का उद्देश्य विस्मृत होने लगता है और वह भक्ति मार्ग से विमुख होने लगता है।
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