नवरात्रि कलश की स्थापना कैसे करें Navratri Kalash Ki Sthapna Vidhi Muhurt

नवरात्रि कलश की स्थापना कैसे करें Navratri Kalash Ki Sthapna Vidhi Muhurt

नवरात्रि व्रत के समय कलश की स्थापना करना बहुत ही शुभ होता है। कलश की स्थापना के कुछ नियम होते हैं जिनका पालन करके हम नवरात्रि पर्व के समय उपवास करके शुभ फल प्राप्त कर सकते हैं। आज हम कलश की स्थापना की विधि के बारे में जानेंगे। दुर्गा पूजा की तैयारी करते समय कलश की स्थापना करना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। तो आइए जानते हैं कलश स्थापना के मुख्य नियम क्या होते हैं।
 
नवरात्रि कलश की स्थापना कैसे करें Navratri Kalash Ki Sthapna Vidhi Muhurt
 
कलश स्थापना के नियम:
  1. कलश की स्थापना शुभ मुहूर्त में ही की जाती है।
  2. अगर किसी कारणवश शुभ मुहूर्त में कलश की स्थापना नहीं हुई हो तो अभिजीत मुहूर्त में भी कलश की स्थापना कर सकते हैं।
  3. नवरात्रि के प्रथम दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि करके साफ एवं स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  4. स्नान करने के उपरांत मंदिर की सफाई करें।
  5. मंदिर की सफाई करके गंगाजल छिड़क कर मंदिर को पवित्र करें।
  6. शुद्ध जल से धोकर चौकी को मंदिर में रखें।
  7. चौकी को सुखा कर उस पर लाल कपड़ा बिछाएं।
  8. चौकी के बीच में दुर्गा माता की मूर्ति रखें।
  9. मूर्ति के दांयी ओर शुद्ध जल से भरा हुआ कलश रखें।
  10. कलश पर कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं।
  11. कलश को आम या अशोक के पांच पत्तों से ढक कर रखें।
  12. अब नारियल पर लाल रंग का कपड़ा लपेटकर कलावा बांधे।
  13. नारियल को कलश पर रखें।
  14. माता की चौकी के पास एक पात्र में जौ बोयें।
  15. जौ के पात्र में हमेशा पर्याप्त मात्रा में पानी डालें जिससे जौ अंकुरित हो जायें।
  16. माता की मूर्ति के सामने अखंड ज्योत जलाएं।
  17. पीतल के दीपक में गाय के घी से अखंड जोत जलाएं।
  18. मां दुर्गा का आवाहन करें तथा अपने घर में सुख समृद्धि की कामना करें।
  19. मां को लाल रंग के पुष्प तथा पंचमेवा का प्रसाद चढ़ाएं।
  20. दुर्गा मां का चालीसा पाठ करें।

कलश स्थापना का मुहूर्त क्या है?

 शारदीय नवरात्रि पर कलश की स्थापना एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। कलश को देवी का प्रतीक माना जाता है और इसकी स्थापना से घर में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है। आप दुर्गा सप्तशती और दुर्गा के सहस्रनाम का भी पाठ कर सकते हैं। ये पाठ विशेष फलदायी होते हैं। उदयातिथि के अनुसार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्टूबर से होगी। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 15 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 44 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। इस दौरान कलश स्थापना करना सबसे शुभ माना जाता है।

शारदीय नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा की नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करके भक्त उनकी कृपा प्राप्त करते हैं। नवरात्रि के दौरान देवी की पूजा और आराधना करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

दुर्गा मां की आरती करें। नवरात्रि पर्व के दौरान अखंड ज्योत जलाने से दुख दूर होतें है तथा सुख समृद्धि प्राप्त होती है। हिंदू धर्म में मां दुर्गा के नवरात्रि उपवास को बहुत ही श्रद्धा भाव से किया जाता है। मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा करने तथा उपवास करने से घर में सुख, शांति तथा समृद्धि का वास होता है। नवरात्रि में कलश स्थापना का विशेष महत्व है। नवरात्रि के पहले दिन सुबह सूर्योदय के बाद शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना की जाती है। कलश स्थापना से नवरात्रि का आरंभ होता है। कलश को देवी का प्रतीक माना जाता है। कलश स्थापना से घर में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।
 
 

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कलश को देवी का प्रतीक माना जाता है। कलश स्थापना से घर में देवी का आह्वान किया जाता है और देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। कलश में सभी देवताओं का आह्वान किया जाता है। कलश स्थापना से घर में सभी देवताओं का वास होता है और घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। कलश में जल और अन्य शुभ सामग्री रखी जाती है। यह जल देवी का आशीर्वाद माना जाता है और इसका उपयोग नवरात्रि के दौरान पूजा के लिए किया जाता है।

कलशस्य मुखे विष्णु, कंठे रुद्र समाश्रिता:,
मूलेटस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृता:।
कुक्षौतु सागरा, सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा,
ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणा:
अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिता।

इस मंत्र का अर्थ है:
कलश के मुख में विष्णुजी का निवास है।
कलश के कंठ में महेश का निवास है।
कलश के मूल में ब्रह्मा का निवास है।
कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं।
कलश के गर्भ में समुद्र, सातों द्वीप, वसुंधरा, चारों वेद और अन्य सभी देवता समाहित हैं। यह मंत्र कलश में सभी देवताओं का आह्वान करता है और उन्हें घर में आमंत्रित करता है। इससे घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। 

नवरात्रि कलश स्थापना कैसे करें ?

नवरात्रि के दौरान देवी को लाल रंग के वस्त्र, रोली, लाल चंदन, सिन्दूर, लाल साड़ी, लाल चुनरी, आभूषण तथा खाने-पीने के सभी पदार्थ जो लाल रंग के होते हैं, वही अर्पित किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि लाल रंग देवी की शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है। नवरात्रों के दौरान माता का आशीर्वाद पाने के लिए इस श्लोक की स्तुति करना भी शुभ होता है:

या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

 
इस श्लोक का अर्थ है:
हे देवी, जो सभी प्राणियों में श्रद्धा के रूप में विराजमान हो, तुम्हें नमस्कार है।
तुम्हें नमस्कार है, तुम्हें नमस्कार है, तुम्हें नमस्कार है, तुम्हें बार-बार नमस्कार है।
नवरात्रि के दौरान कलश को लगातार 9 दिनों तक एक ही स्थान पर रखा जाता है। इस दौरान कलश की नियमित रूप से पूजा की जाती है।  घटस्थापना के लिए दुर्गाजी की स्वर्ण अथवा चांदी की मूर्ति या ताम्र मूर्ति उत्तम होती है। ये सभी धातुएं पवित्र मानी जाती हैं और देवी की पूजा में इनका उपयोग शुभ माना जाता है।

अगर ये धातुएं उपलब्ध न हों तो मिट्टी की मूर्ति भी अवश्य होनी चाहिए। मिट्टी को भी पवित्र माना जाता है और देवी की पूजा में इसका उपयोग शुभ माना जाता है। मिट्टी की मूर्ति को रंग आदि से चित्रित करना भी शुभ माना जाता है।
नवदुर्गा को लाल वस्त्र, आभूषण और नैवेद्य प्रिय हैं। इसलिए, नवरात्रि के दौरान देवी को लाल रंग के वस्त्र, आभूषण और नैवेद्य अर्पित करना चाहिए। नवदुर्गा को लाल रंग का वस्त्र इसलिए प्रिय है क्योंकि यह शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है। देवी की शक्ति और ऊर्जा को बढ़ाने के लिए उन्हें लाल रंग का वस्त्र अर्पित किया जाता है। नवदुर्गाओं को आभूषण इसलिए प्रिय हैं क्योंकि यह उनकी सुंदरता और आकर्षण को बढ़ाते हैं। देवी की सुंदरता और आकर्षण को बढ़ाने के लिए उन्हें आभूषण अर्पित किए जाते हैं।

नवदुर्गा को नैवेद्य इसलिए प्रिय हैं क्योंकि यह उन्हें प्रसन्न करते हैं। देवी को प्रसन्न करने के लिए उन्हें नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं। नवरात्रि के दौरान देवी को रोज नए रंगीन रेशम आदि के वस्त्र आभूषण, गले का हार, हाथ की चूड़ियां, कंगन, मांग टीका, नथ और कर्णफूल आदि अवश्य रखे जाने चाहिए। यह सभी सामग्री 9 दिन नवदुर्गाओं को पूजा के दौरान समर्पित की जानी चाहिए।

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