प्रकर्ति मुस्कुरा रही है लिरिक्स Prakrati Muskura Rahi hai Lyrics
आधुनिकता ने रौंदा जिसे,
वो आईना दिखा रही है,
मानव जीवन संकट में है,
और प्रकर्ति मुस्कुरा रही है।
नदियों में पुन प्रवाहित हुई,
निर्मल जल की कल कल धारा,
नमामि गंगे से हो ना सका जो,
साफ हो गया कचरा सारा,
नीला हुआ आकाश दुबारा,
छंट गया है धुंआ सारा,
बहने लगी है स्वच्छ हवाएं,
निखरी कुदरत की छटाएँ,
कोसों दूर से दिखने लगी,
शैल श्रृंखलाएं लुभा रही हैं।
सागर झीलों किनारे,
दुर्लभ पक्षियों के झुंड आने लगे है,
केसरिया शाम में मिलकर,
पंछी नभ में नृत्य दिखाने लगे है,
सभी जीव निडर विचर रहे,
अब अपने अपने क्षेत्रों में,
शिकारी सब डर कैद हुए,
दुबके बैठे अपने घरों में,
कोलाहल सब शांत हुआ,
उन्मुक्तता सब पर छा रही है।
शायद अब समझे मनुज,
क्या क्या विनाश उसने किया है,
विकाश के नाम पर नित,
प्रकर्ति को कितना दंश दिया है,
प्रकृति सम्मत उन्नति उत्तम,
जिये और जीने दे हम,
शायद चेतना में अब आये,
सनातन सिद्धांत प्रशस्ती पाये,
संकट नवपथ दिखलाये,
बात अब समझ आ रही है।
Nature celebrating (प्रकृति उत्सव मना रही है) Poem By Vihaan Raj
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