जद से दादी ढांढन नगरी थारी आवन लाग्या भजन

जद से दादी ढांढन नगरी थारी आवन लाग्या भजन

जद से दादी ढांढन नगरी,
थारी आवन लाग्या,
म्हारा अटका सारा,
काज थे बनावन लाग्या।

हाथों हाथ मिल्यो है परचो,
पूरा वर्ष को देवे खर्चो,
भर-भर झोलियां कलकत्ते,
ले जावन लाग्या,
म्हारा अटका सारा काज,
थे बनावन लाग्या।

अपने घर सूं घाणघंड लाया,
आया हूँ परिवार के सांग,
थाने दुःख-सुख री सारी,
बात सुनावन लाग्या,
म्हारा अटका सारा काज,
थे बनावन लाग्या।

जब सूं थारी शरण में आयो,
दादी जी आराम ही पाया,
अब तो घूम-घूम के,
दुनिया ने बतावन लाग्या,
म्हारा अटका सारा काज,
थे बनावन लाग्या।

ढांढन आयो बिगड़ी बन गई,
बोले पवन री किस्मत खुल गई,
इब तो हाजरी में अमावस में,
लगावन लाग्या,
म्हारा अटका सारा काज,
थे बनावन लाग्या।


जब से दादी थारी ~ Jab Se Dadi Thari ~ Raju Mehra

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Saroj Jangir Author Admin - Saroj Jangir

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