बहुत नाज करते हैं रहिमत पे हम
बहुत नाज करते हैं रहिमत पे हम,
सलामत रहे तेरा नज़रे कर्म।
जिधर देखते हैं उधर तू ही तू है,
हर शै में जलवा तेरा हूबहू है,
जमाना दीवाना हो चूमें कदम,
बहुत नाज करते हैं रहिमत पे हम,
सलामत रहे तेरा नज़रे कर्म।
तेरी रहमतों का नहीं है ठिकाना,
है दीदार तेरा दया का खज़ाना,
सभी शहंशाह तेरा भरते हैं दम,
बहुत नाज करते हैं रहिमत पे हम।
बहुत शुक्रिया है बड़ी मेहरबानी,
बसर हो रही है यह जिंदगानी,
तुम्हारी रज़ा में ही राजी हैं हम,
बहुत नाज करते हैं रहिमत पे हम।
तेरी रहमतों के कर्जदार हैं हम,
गुनाहों पै अपने शर्मसार हैं हम,
मधुप खा रहा है यही एक गम,
बहुत नाज करते हैं रहिमत पे हम।
बहुत नाज़ करते हैं रहमत पे हम || गोलोकवासी श्री रामेश्वर दास जी || लेखक श्री केवल कृष्ण मधुप
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