छबीलो मेरो कान्हा ब्याहन जाये भजन

छबीलो मेरो कान्हा ब्याहन जाये भजन

 
छबीलो मेरो कान्हा ब्याहन जाये भजन

ब्याहन जाए वो तो ब्याहन जाये,
रंगीलो मेरो कान्हा ब्याहन जाये।

मेरे कान्हा के सर मुकुट बिराजे,
चितवन चित्त चुराये,
छबीलो मेरो ब्याहन जाये।

मेरे कान्हा के गल मोतियन माला,
वो तो चूमत चरणन जाये,
छबीलो मेरो ब्याहन जाये।

मेरो कान्हा मानो कमल मधुमय,
मधुकर रहे मंडराये,
छबीलो मेरो ब्याहन जाये।

मेरे कान्हा के होठ पान की लाली,
बोलत फूल झराये,
छबीलो मेरो ब्याहन जाये।

मेरो कान्हा छवि रूप पिटारी,
वो तो कोटिन काम लजाये,
छबीलो मेरो ब्याहन जाये।

मेरे कान्हा के मन लगी चटपटी,
वो तो राधा जू को मन ललचाये,
छबीलो मेरो ब्याहन जाये।

रसीलो मेरो कान्हा ब्याहन जाये,
रंगीलो मेरो कान्हा ब्याहन जाये।


vinod agrawal-kanha byahan jaye
 
कृष्ण का यह “छबीलो” स्वरूप आकर्षण का नहीं, आनन्द का सार है। उनके रूप में वह मिठास है जिससे संसार के सभी रस फीके लगते हैं। जब यह कहा जाता है कि “मेरो कान्हा मानो कमल मधुमय,” तो यह केवल सौंदर्य का रूपक नहीं, बल्कि दार्शनिक सत्य है — कि चेतना में जब प्रेम खिलता है, तो ईश्वर कमल की तरह उसी अंतःकरण में प्रकट होता है। वे कोटि कामों को लजा देने वाले हैं, क्योंकि उनका सौंदर्य किसी देह से नहीं, करुणा और माधुर्य से फूटता है। यही वह माधुर्य‑भाव है जिसमें राधा का हृदय ललचाता है और ब्रज वासी स्वयं को भाग्यशाली मानते हैं कि वे ऐसे श्याम का ब्याह देख रहे हैं। ब्रज की धरती पर आज प्रेम नाचता है, भक्ति सजती है — क्योंकि “रसीलो मेरो कान्हा ब्याहन जाये।”
 
ऐसे ही अन्य भजनों के लिए आप होम पेज / गायक कलाकार के अनुसार भजनों को ढूंढें.


पसंदीदा गायकों के भजन खोजने के लिए यहाँ क्लिक करें।

Next Post Previous Post