जगत के खिवैया राम सिया मैया लिरिक्स Jagat Ke Khivaiya Bhajan
जब केवट ने देखा,
श्री राम वनवास जाने के लिए,
उनकी नाव में आ रहे है,
तो केवट की प्रसन्नता का,
ठिकाना नहीं रहा,
और उसने सोचा।
जगत के खिवैया राम सिया मैया,
आन विराजे आज केवट की नैया,
जो सबको पार करे राम सिया मैया,
धन्य भाग केवट के बने जो खिवैया।
नैया पर जब राम जी पधारे,
केवट ने पहले पांव पखारे,
पांव क्यों पाखरे,
क्या केवट की मनसा,
केवट ने दूर की राम की शंसा,
राम ने पत्थर को पैर क्या लगाया,
उसे सुन्दर सी महिला बनाया,
नाव नार बन गई सौत घर में आ गई।
एक नार से मेरा घर उजियारा,
दूजी अगर आई तो हो जैहे अंधियारा,
राम अपने बाप की बात याद कर लो,
एक नहीं दो नहीं तीन महतारी,
जिनने राम घर से निकारी,
एक अगर होती राम आपकी महतारी,
क्यों देती आपको घर से निकारी,
संशय करो ना मेरे राम सिया मैया,
जगत के खिवैया राम सिया मैया,
आन विराजे आज केवट की नैया,
जो सबको पार करे राम सिया मैया,
धन्य भाग केवट के बने जो खिवैया।
इस तरह केवट ने राम को बैठाया,
और नदिया के उस पार कराया,
सिया ने उतर के देना चाही उतराई,
मुस्कुरा के सिया ने मुद्रिका दिखाई,
बोले केवट कैसे लेले उतराई,
सबको पार लगाते राम रघुराई,
फिर हम दोनों की जात एक कहलाई,
अगर माई देना चाहती हो उतराई,
तो वापिस इस घाट लेना मेरी नैया।
श्री राम वनवास जाने के लिए,
उनकी नाव में आ रहे है,
तो केवट की प्रसन्नता का,
ठिकाना नहीं रहा,
और उसने सोचा।
जगत के खिवैया राम सिया मैया,
आन विराजे आज केवट की नैया,
जो सबको पार करे राम सिया मैया,
धन्य भाग केवट के बने जो खिवैया।
नैया पर जब राम जी पधारे,
केवट ने पहले पांव पखारे,
पांव क्यों पाखरे,
क्या केवट की मनसा,
केवट ने दूर की राम की शंसा,
राम ने पत्थर को पैर क्या लगाया,
उसे सुन्दर सी महिला बनाया,
नाव नार बन गई सौत घर में आ गई।
एक नार से मेरा घर उजियारा,
दूजी अगर आई तो हो जैहे अंधियारा,
राम अपने बाप की बात याद कर लो,
एक नहीं दो नहीं तीन महतारी,
जिनने राम घर से निकारी,
एक अगर होती राम आपकी महतारी,
क्यों देती आपको घर से निकारी,
संशय करो ना मेरे राम सिया मैया,
जगत के खिवैया राम सिया मैया,
आन विराजे आज केवट की नैया,
जो सबको पार करे राम सिया मैया,
धन्य भाग केवट के बने जो खिवैया।
इस तरह केवट ने राम को बैठाया,
और नदिया के उस पार कराया,
सिया ने उतर के देना चाही उतराई,
मुस्कुरा के सिया ने मुद्रिका दिखाई,
बोले केवट कैसे लेले उतराई,
सबको पार लगाते राम रघुराई,
फिर हम दोनों की जात एक कहलाई,
अगर माई देना चाहती हो उतराई,
तो वापिस इस घाट लेना मेरी नैया।
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Author - Saroj Jangir
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