जय राम सदा सुखधाम हरे

जय राम सदा सुखधाम हरे,
रघुनायक सायक चाप धरे।
भव बारन दारन सिंह प्रभो,
गुन सागर नागर नाथ बिभो।
तन काम अनेक अनूप छबी,
गुन गावत सिद्ध मुनींद्र कबी।
जसु पावन रावन नाग महा,
खगनाथ जथा करि कोप गहा।
जन रंजन भंजन सोक भयं,
गतक्रोध सदा प्रभु बोधमयं।
अवतार उदार अपार गुनं,
महि भार बिभंजन ग्यानघनं।
अज ब्यापकमेकमनादि सदा,
करुनाकर राम नमामि मुदा।
रघुबंस बिभूषन दूषन हा,
कृत भूप बिभीषन दीन रहा।
गुन ग्यान निधान अमान अजं,
नित राम नमामि बिभुं बिरजं।
भुजदंड प्रचंड प्रताप बलं,
खल बृंद निकंद महा कुसलं।
बिनु कारन दीन दयाल हितं,
छबि धाम नमामि रमा सहितं।
भव तारन कारन काज परं,
मन संभव दारुन दोष हरं।
सर चाप मनोहर त्रोन धरं,
जलजारुन लोचन भूपबरं।
सुख मंदिर सुंदर श्रीरमनं,
मद मार मुधा ममता समनं।
अनवद्य अखंड न गोचर गो,
सबरूप सदा सब होइ न गो।
इति बेद बदंति न दंतकथा,
रबि आतप भिन्नमभिन्न जथा।
कृतकृत्य बिभो सब बानर ए,
निरखंति तवानन सादर ए।
धिग जीवन देव सरीर हरे,
तव भक्ति बिना भव भूलि परे।
अब दीन दयाल दया करिऐ,
मति मोरि बिभेदकरी हरिऐ।
जेहि ते बिपरीत क्रिया करिऐ,
दुख सो सुख मानि सुखी चरिऐ।
खल खंडन मंडन रम्य छमा,
पद पंकज सेवित संभु उमा।
नृप नायक दे बरदानमिदं,
चरनांबुज प्रेम सदा सुभदं।
जय राम सदा सुख धाम हरे। Jai Ram Sukhdham Hare | Shriram Stuti | Ramcharitmanas | Lanka Kand
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