मैं तो सौय रही सपने में लिरिक्स Main To Soy Rahi Sapane Me Lyrics
मैं तो सौय रही सपने में,
मो पै रंग डार्यो नंदलाल,
सपने में श्याम मेरे घर आये,
ग्वाल बाल कोई संग न लाये,
पौढ़ पलकां पे मेरे संग,
टटोरन लगे मेरो अंग,
दई पिचकारी भरभर रंग।
दोहा पिचकारी के लगत ही,
मो मन उठी तरंग,
जैसे मिसरी कंदकी,
घोट पिवाय दइ भंग,
घोट पिवाय दइभंग,
गाल मेरे कर दिये लालम लाल,
मैं तो सोय रही सपने में,
मो पै रंग डार्यो नंदलाल।
सपने की करूं कहा बड़ाई,
मानो कोई संपत्ति पाई,
खुले सपने में मेरे भाग,
के मेरी गई तपस्या जाग,
मनाय रही हंसहंस फाग सुहाग।
हंस हंस फाग मनावती,
चरन पलोटत जाऊ,
धन्यधन्य या रेणु के,
फिर ऐसी नहीं पाऊं,
फिर ऐसी नहीं पाऊं,
भई सपने में मालामाल,
मैं तो सोय रही सपने में,
मो पै रंग डार्यो नंदलाल।
इतने में मेरे खुल गये नैना,
देखू तो कछु लेना न दैना,
परी पलकां पै मैं पछतात,
मलत रह गई दोउ हाथ,
मन कीमन में रह गई बात।
दोहा मन की मन में रह गई है,
आयौ परभात,
बज्यो फजर कौगजर तब,
तीन ढाक के पात।
तीन ढाक के पात,
रही में कंगालिन की कंगाल,
मैं तो सोय रही सपने में,
मो पै रंग डार्यो नंदलाल।
होरी को रस रसिक ही जाने,
रसकू क्रूर कहा पहचाने,
जो रस बरसे ब्रज के माहि,
सो रस तीन लोक में नाहि,
देख के ब्रह्मादिक ललचाये।
ब्रह्मादिक ललचाय ते,
धन्यधन्य ब्रजधाम,
गोवर्धन दस विस में,
द्विजवर घासीराम।
द्विजवर घासीराम सदा,
वे कह रंगीले ख्याल,
मैं तो सोय रही सपने में,
मो पै रंग डार्यो नंदलाल।
मो पै रंग डार्यो नंदलाल,
सपने में श्याम मेरे घर आये,
ग्वाल बाल कोई संग न लाये,
पौढ़ पलकां पे मेरे संग,
टटोरन लगे मेरो अंग,
दई पिचकारी भरभर रंग।
दोहा पिचकारी के लगत ही,
मो मन उठी तरंग,
जैसे मिसरी कंदकी,
घोट पिवाय दइ भंग,
घोट पिवाय दइभंग,
गाल मेरे कर दिये लालम लाल,
मैं तो सोय रही सपने में,
मो पै रंग डार्यो नंदलाल।
सपने की करूं कहा बड़ाई,
मानो कोई संपत्ति पाई,
खुले सपने में मेरे भाग,
के मेरी गई तपस्या जाग,
मनाय रही हंसहंस फाग सुहाग।
हंस हंस फाग मनावती,
चरन पलोटत जाऊ,
धन्यधन्य या रेणु के,
फिर ऐसी नहीं पाऊं,
फिर ऐसी नहीं पाऊं,
भई सपने में मालामाल,
मैं तो सोय रही सपने में,
मो पै रंग डार्यो नंदलाल।
इतने में मेरे खुल गये नैना,
देखू तो कछु लेना न दैना,
परी पलकां पै मैं पछतात,
मलत रह गई दोउ हाथ,
मन कीमन में रह गई बात।
दोहा मन की मन में रह गई है,
आयौ परभात,
बज्यो फजर कौगजर तब,
तीन ढाक के पात।
तीन ढाक के पात,
रही में कंगालिन की कंगाल,
मैं तो सोय रही सपने में,
मो पै रंग डार्यो नंदलाल।
होरी को रस रसिक ही जाने,
रसकू क्रूर कहा पहचाने,
जो रस बरसे ब्रज के माहि,
सो रस तीन लोक में नाहि,
देख के ब्रह्मादिक ललचाये।
ब्रह्मादिक ललचाय ते,
धन्यधन्य ब्रजधाम,
गोवर्धन दस विस में,
द्विजवर घासीराम।
द्विजवर घासीराम सदा,
वे कह रंगीले ख्याल,
मैं तो सोय रही सपने में,
मो पै रंग डार्यो नंदलाल।
Mae Toh Sooi Rahi Sapne Me | Rasiya | Pushtiras
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