तब मुनि हृदयं धीर धरि लिरिक्स Tab Muni Hridyam Dheer Dhari Lyrics
तब मुनि हृदयं धीर धरि,
गहि पद बारहिं बार,
निज आश्रम प्रभु आनि,
करि पूजा बिबिध प्रकार।
कह मुनि प्रभु सुनु बिनती मोरी,
अस्तुति करौं कवन बिधि तोरी,
महिमा अमित मोरि मति थोरी,
रबि सन्मुख खद्योत अँजोरी।
श्याम तामरस दाम शरीरं,
जटा मुकुट परिधन मुनिचीरं,
पाणि चाप शर कटि तूणीरं,
नौमि निरंतर श्रीरघुवीरं।
मोह विपिन घन दहन कृशानुः,
संत सरोरुह कानन भानु:
निसिचर करि वरूथ मृगराजः,
त्रास सदा नो भव खग बाजः।
अरुण नयन राजीव सुवेशं,
सीता नयन चकोर निशेशं,
हर हृदि मानस बाल मरालं,
नौमि राम उर बाहु विशालं।
संशय सर्प ग्रसन उरगादः,
शमन सुकर्कश तर्क विषाद:,
भव भंजन रंजन सुर यूथः,
त्रातु सदा नो कृपा वरूथः।
निर्गुण सगुण विषम सम रूपं,
ज्ञान गिरा गोतीतमनूपं,
अमलमखिलमनवद्यमपारं,
नौमि राम भंजन महि भारं।
भक्त कल्पपादप आरामः,
तर्जन क्रोध लोभ मद कामः,
अति नागर भव सागर सेतुः,
त्रातु सदा दिनकर कुल केतुः।
अतुलित भुज प्रताप बल धामः,
कलि मल विपुल विभंजन नामः,
धर्म वर्म नर्मद गुण ग्रामः,
संतत शं तनोतु मम रामः।
जदपि बिरज ब्यापक अबिनासी,
सब के हृदयँ निरंतर बासी,
तदपि अनुज श्री सहित खरारी,
बसतु मनसि मम काननचारी।
जे जानहिं ते जानहुँ स्वामी,
सगुन अगुन उर अंतरजामी,
जो कोसलपति राजिव नयना,
करउ सो राम हृदय मम अयना।
अस अभिमान जाइ जनि भोरे,
मैं सेवक रघुपति पति मोरे,
सुनि मुनि बचन राम मन भाए,
बहुरि हरषि मुनिबर उर लाए।
परम प्रसन्न जानु मुनि मोही,
जो बर मागहु देउँ सो तोही,
मुनि कह मैं बर कबहुँ न जाचा,
समुझि न परइ झूठ का साचा।
तुम्हहि नीक लागै रघुराई,
सो मोहि देहु दास सुखदाई,
अबिरल भगति बिरति बिग्याना,
होहु सकल गुन ग्यान निधाना।
प्रभु जो दीन्ह सो बरु मैं पावा,
अब सो देहु मोहि जो भावा,
अनुज जानकी सहित,
प्रभु चाप बान धर राम,
मन हिय गगन इंदु इव,
बसहु सदा निहकाम।
गहि पद बारहिं बार,
निज आश्रम प्रभु आनि,
करि पूजा बिबिध प्रकार।
कह मुनि प्रभु सुनु बिनती मोरी,
अस्तुति करौं कवन बिधि तोरी,
महिमा अमित मोरि मति थोरी,
रबि सन्मुख खद्योत अँजोरी।
श्याम तामरस दाम शरीरं,
जटा मुकुट परिधन मुनिचीरं,
पाणि चाप शर कटि तूणीरं,
नौमि निरंतर श्रीरघुवीरं।
मोह विपिन घन दहन कृशानुः,
संत सरोरुह कानन भानु:
निसिचर करि वरूथ मृगराजः,
त्रास सदा नो भव खग बाजः।
अरुण नयन राजीव सुवेशं,
सीता नयन चकोर निशेशं,
हर हृदि मानस बाल मरालं,
नौमि राम उर बाहु विशालं।
संशय सर्प ग्रसन उरगादः,
शमन सुकर्कश तर्क विषाद:,
भव भंजन रंजन सुर यूथः,
त्रातु सदा नो कृपा वरूथः।
निर्गुण सगुण विषम सम रूपं,
ज्ञान गिरा गोतीतमनूपं,
अमलमखिलमनवद्यमपारं,
नौमि राम भंजन महि भारं।
भक्त कल्पपादप आरामः,
तर्जन क्रोध लोभ मद कामः,
अति नागर भव सागर सेतुः,
त्रातु सदा दिनकर कुल केतुः।
अतुलित भुज प्रताप बल धामः,
कलि मल विपुल विभंजन नामः,
धर्म वर्म नर्मद गुण ग्रामः,
संतत शं तनोतु मम रामः।
जदपि बिरज ब्यापक अबिनासी,
सब के हृदयँ निरंतर बासी,
तदपि अनुज श्री सहित खरारी,
बसतु मनसि मम काननचारी।
जे जानहिं ते जानहुँ स्वामी,
सगुन अगुन उर अंतरजामी,
जो कोसलपति राजिव नयना,
करउ सो राम हृदय मम अयना।
अस अभिमान जाइ जनि भोरे,
मैं सेवक रघुपति पति मोरे,
सुनि मुनि बचन राम मन भाए,
बहुरि हरषि मुनिबर उर लाए।
परम प्रसन्न जानु मुनि मोही,
जो बर मागहु देउँ सो तोही,
मुनि कह मैं बर कबहुँ न जाचा,
समुझि न परइ झूठ का साचा।
तुम्हहि नीक लागै रघुराई,
सो मोहि देहु दास सुखदाई,
अबिरल भगति बिरति बिग्याना,
होहु सकल गुन ग्यान निधाना।
प्रभु जो दीन्ह सो बरु मैं पावा,
अब सो देहु मोहि जो भावा,
अनुज जानकी सहित,
प्रभु चाप बान धर राम,
मन हिय गगन इंदु इव,
बसहु सदा निहकाम।
सुतीक्ष्ण मुनि | राम स्तुति | Kah Muni Prabhu | Shriram Stuti | Sutikshna Muni | Manas | Aranyakand
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