श्री दामोदर अष्टकम भजन Shri Damodar Ashtkam Bhajan

श्री दामोदर अष्टकम भजन लिरिक्स Shri Damodar Ashtkam Bhajan Lyrics

 
श्री दामोदर अष्टकम भजन लिरिक्स Shri Damodar Ashtkam Bhajan Lyrics

नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं,
लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानं,
यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं,
परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या।

जिनके कपोलों पर दोदुल्यमान,
मकराकृत कुंडल क्रीड़ा कर रहे है,
जो गोकुल नामक अप्राकृत,
चिन्मय धाम में परम शोभायमान है,
जो दधिभाण्ड,
दूध और दही से भरी मटकी,
फोड़ने के कारण,
माँ यशोदा के भय से भीत होकर,
ओखल से कूदकर अत्यंत वेगसे,
दौड़ रहे है।
और जिन्हें माँ यशोदा ने उनसे भी,
अधिक वेगपूर्वक दौड़कर पकड़ लिया है।
ऐसे उन सच्चिदानंद स्वरुप,
सर्वेश्वर श्री कृष्ण की मै वंदना करता हूं।

रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तम्,
कराम्भोज-युग्मेन सातङ्क-नेत्रम्,
मुहुः श्वास-कम्प-त्रिरेखाङ्क-कण्ठ,
स्थित-ग्रैवं दामोदरं भक्ति-बद्धम्।

जननी के हाथ में छड़ी देखकर,
मार खानेके भय से डरकर,
जो रोते रोते बारम्बार,
अपनी दोनों आंखों को अपने,
हस्तकमल से मसल रहे हैं,
जिनके दोनों नेत्र भय से,
अत्यंत विव्हल है,
रोदन के आवेग से बारम्बार,
श्वास लेनेके कारण,
त्रिरेखायुक्त कंठ में पड़ी हुई,
मोतियों की माला आदि,
कंठभूषण कम्पित हो रहे है,
और जिनका उदर माँ यशोदा की,
वात्सल्य-भक्ति के द्वारा,
रस्सी से बँधा हुआ है,
उन सच्चिदानंद स्वरुप,
सर्वेश्वर श्री कृष्ण की,
मैं वंदना करता हूं।

इतीदृक् स्वलीलाभिरानंद कुण्डे,
स्व-घोषं निमज्जन्तम् आख्यापयन्तम्,
तदीयेशितज्ञेषु भक्तिर्जितत्वम,
पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे।

जो इस प्रकार दामबन्धनादि-रूप,
बाल्य-लीलाओं के द्वारा,
गोकुलवासियों को आनंद-सरोवर में,
नित्यकाल सरावोर करते रहते हैं,
और जो ऐश्वर्यपुर्ण ज्ञानी भक्तों के,
निकट मैं अपने ऐश्वर्यहीन,
प्रेमी भक्तों द्वारा जीत लिया गया हूं,
ऐसा भाव प्रकाश करते हैं,
उन दामोदर श्रीकृष्ण की मैं,
प्रेमपूर्वक बारम्बार वंदना करता हूं।

वरं देव मोक्षं न मोक्षावधिं वा,
न चान्यं वृणेऽहं वरेशादपीह,
इदं ते वपुर्नाथ गोपाल बालं,
सदा मे मनस्याविरास्तां किमन्यैः।

हे देव आप सब प्रकार के वर,
देने में पूर्ण समर्थ हैं,
तो भी मै आपसे चतुर्थ पुरुषार्थरूप,
मोक्ष या मोक्ष की चरम सीमारूप,
श्री वैकुंठ आदि लोक भी नहीं चाहता,
और न मैं श्रवण और कीर्तन आदि,
नवधा भक्ति द्वारा प्राप्त,
किया जाने वाला कोई,
दूसरा वरदान ही आपसे मांगता हूं,
हे नाथ मैं तो आपसे इतनी ही,
कृपा की भीख मांगता हूं कि,
आपका यह बालगोपालरूप,
मेरे हृदय में नित्यकाल विराजमान रहे,
मुझे और दूसरे वरदान से,
कोई प्रयोजन नहीं है।

इदं ते मुखाम्भोजम् अत्यन्त-नीलैः,
वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश्च गोप्या,
मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं में,
मनस्याविरास्तामलं लक्षलाभैः।

हे देव अत्यंत श्यामलवर्ण और,
कुछ-कुछ लालिमा लिए हुए चिकने,
और घुंघराले लाल बालो से घिरा हुआ,
तथा माँ यशोदा के द्वारा बारम्बार,
चुम्बित आपका मुखकमल और,
पके हुए बिम्बफल की भाँति,
अरुण अधर पल्लव मेरे हृदय में,
सर्वदा विराजमान रहे,
मुझे लाखों प्रकार के,
दूसरे लाभों की आवश्यकता नहीं है।

नमो देव दामोदरानन्त विष्णो,
प्रभो दुःख-जालाब्धि-मग्नम्,
कृपा-दृष्टि-वृष्ट्याति-दीनं बतानु,
गृहाणेष मामज्ञमेध्यक्षिदृश्यः।

हे देव हे भक्तवत्सल दामोदर,
हे अचिन्त्य शक्तियुक्त अनंत,
हे सर्वव्यापक विष्णो हे मेरे ईश्वर प्रभो,
हे परमस्वत्रन्त ईश मुझपर प्रसन्न होवे,
मैं दुःखसमूहरूप समुद्र में डूबा जा रहा हूं,
अतएव आप अपनी कृपादृष्टिरूप,
अमृत की वर्षाकर मुझ अत्यंत,
दीन-हीन शरणागत पर अनुग्रह कीजिये,
एवं मेरे नेत्रों के सामने,
साक्षात् रूप से दर्शन दीजिये।

कुबेरात्मजौ बद्ध-मूर्त्यैव यद्वत्,
त्वया मोचितौ भक्ति-भाजौ कृतौ च,
तथा प्रेम-भक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ,
न मोक्षे ग्रहो मेऽस्ति दामोदरेह।

हे दामोदर! जिस प्रकार अपने,
दामोदर रूप से ओखल में,
बंधे रहकर भी नलकुबेर और,
मणिग्रिव नामक कुबेर के दोनों पुत्रों का,
नारदजी के श्राप से प्राप्त वृक्षयोनि से,
उद्धार कर उन्हें परम प्रयोजनरूप,
अपनी भक्ति भी प्रदान की थी,
उसी प्रकार मुझे भी आप अपनी,
प्रेमभक्ति प्रदान कीजिये,
यही मेरा एकमात्र आग्रह है,
किसी भी अन्य प्रकार के मोक्ष के लिए,
मेरा तनिक भी आग्रह नहीं है।

नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्-दीप्ति-धाम्ने,
त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने,
नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै,
नमोऽनन्त-लीलाय देवाय तुभ्यम्।

हे दामोदर आपके उदर को,
बाँधनेवाली महान रज्जू/रस्सी को,
प्रणाम है। निखिल ब्रह्मतेज के आश्रय,
और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के आधारस्वरूप,
आपके उदर को नमस्कार है।
आपकी प्रियतमा श्रीराधारानी के,
चरणों में मेरा बारम्बार प्रणाम है,
और हे अनंत लीलाविलास करने वाले,
भगवन मैं आपको भी,
सैकड़ों प्रणाम अर्पित करता हूं।


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