मेरे दीन दयाल नन्दलाल हरि भजन

मेरे दीन दयाल नन्दलाल हरि सतगुरु भजन


मेरे दीन दयाल नन्दलाल हरि Mere Deen Dayal Nandlal Bhajan Lyrics

मेरे दीन दयाल नन्दलाल हरि,
वृंदावन मोहे बुला लेना,
मेरी आंख से पर्दा दुई का हटा,
चरणों में अपने जगह देना,
मेरे दीनदयाल नन्दलाल हरि,
वृन्दावन मोहे बुला लेना।

माया जाल की दुनिया में ऐसा फंसा,
हरि नाम भी जपना भूल गया,
मेरी अंत में होगी क्या क्या दशा,
करुणा का हाथ बढ़ा देना,
मेरे दीनदयाल नन्दलाल हरि,
वृन्दावन मोहे बुला लेना।

तोहे छोड़ के किसकी आस करूं,
तेरी नगरी में नित्य निवास करूं,
दिन रात यही अरदास करूं,
तेरी बंसी की धुन सुना देना,
मेरे दीनदयाल नन्दलाल हरि,
वृन्दावन मोहे बुला लेना।

बृज की बुहारी मैं करता रहूं,
तेरी सेवा पूजा मैं करता रहूं,
तेरे धो धो चरण मैं पीया ही करूं,
मेरी नाव को पार लगा,
मेरे दीनदयाल नन्दलाल हरि,
वृन्दावन मोहे बुला लेना।

बिरहाबस नयन कुचाय रहे,
रो रो कर नीर बहाय रहे,
बिन आये रहे अकुलाय रहे,
दुःख का कारण मिटा देना,
मेरे दीनदयाल नन्दलाल हरि,
वृन्दावन मोहे बुला लेना।

तेरे दर्श के कारण मैं प्यासा,
सूरदास प्रभु की ये आशा,
मेरी आस की प्यास बुझा देना,
मेरा जीवन मरण छुड़ा देना,
मेरे दीनदयाल नन्दलाल हरि,
वृन्दावन मोहे बुला लेना।

मेरे दीन दयाल नन्दलाल हरि,
वृन्दावन मोहे बुला लेना,
मेरी आंख से पर्दा दुई का हटा,
चरणों में अपने जगह देना,
मेरे दीनदयाल नन्दलाल हरि,
वृन्दावन मोहे बुला लेना।


मेरे दीन दयाल नंदलाल हरि वृंदावन मोहे बुला लेना Madhavas ft. HH Navayogendra Maharaj


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उनके पवित्रता नवा योगेंद्र स्वामी जी महाराज एच.डी.जी. ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद के प्रमुख शिष्यों में से एक हैं। वह कश्मीर के राजा के राज पुरोहितों (राजा के पारिवारिक ब्राह्मण पुरोहित) के शाही परिवार से आते हैं। महाराज जी एक नैष्ठिक ब्रह्मचारी (जन्म से ब्रह्मचारी) हैं। 9 साल की छोटी उम्र में, एक फिल्म "ध्रुव महाराज" देखकर उन्होंने घर छोड़ दिया और जंगलों की ओर भगवान कृष्ण के दर्शन के लिए चल पड़े। फिर 17 साल की उम्र में, उन्होंने साधुओं के साथ रहने के लिए घर छोड़ दिया और वृंदावन चले गए। 1974 में, उनके पवित्रता ने ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद से दीक्षा प्राप्त की, जो महान इस्कॉन के संस्थापक आचार्य हैं, और औपचारिक रूप से उनके शिष्य बन गए। उनकी भक्ति, त्याग, समर्पण और पवित्रता को देखकर, श्रील प्रभुपाद ने 1975 में, 29 साल की उम्र में, उन्हें सन्यास दीक्षा दी। दो बार उन्हें श्रील प्रभुपाद की व्यक्तिगत सेवक के रूप में सेवा करने का अद्भुत अवसर मिला। 
 
वृंदावन यहाँ केवल एक भू-स्थान नहीं, बल्कि हृदय का पवित्र कोना है जहाँ आत्मा को शांति मिलती है। “बृज की बुहारी करता रहूं”—यह भाव आत्मशुद्धि का प्रतीक है। ऐसा लगता है मानो साधक अपने भीतर के हर अंधकार को झाड़-पोंछकर वहां बसने की तैयारी कर रहा हो जहाँ बंसी की ध्वनि ही दिशा बन जाती है। उसकी थकान प्रेम से धो दी जाती है, और उसके आंसू भक्ति की धार बनकर बहते हैं। जब वह कहता है “मेरी आंख से पर्दा दुई का हटा,” तो यह केवल ईश्वर-दर्शन की मांग नहीं, बल्कि उस अद्वैत की अनुभूति की कामना है जहाँ “मैं” और “तू” का भेद मिट जाता है।

इस प्रेम की गहराई ऐसी है कि साधक उस प्रभु को छोड़कर किसी और की आस भी नहीं करता। उसकी एकमात्र इच्छा यह है कि वह दिन-रात उस अमृतमयी नगरी में निवास करे और हर क्षण यही अरदास करे कि उसे उसकी बंसी की मधुर धुन सुनने को मिलती रहे। सेवा का भाव इतना शुद्ध है कि वह ब्रज की बुहारी (झाड़ू) लगाकर, प्रभु के चरण धोकर उस जल को पीकर ही स्वयं को धन्य मानना चाहता है। यह दर्शाता है कि प्रभु की सेवा में कोई कार्य छोटा नहीं होता। विरह की यह अग्नि इतनी तीव्र है कि आँखें रो-रोकर सूज गई हैं और मन अत्यंत अकुलाहट में है। यह सब दुःख केवल प्रभु के दर्शन न होने के कारण है। अंत में, यह प्रेम यही माँगता है कि प्रभु आकर इस आँख से द्वैत का पर्दा हटा दें, दर्शन की प्यास बुझा दें, और इस तरह जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति दिलाकर हमें अपने चरणों में स्थायी जगह दे दें। 
 
Song - Mere Deen Dayal Nandlal Hari - Madhavas Rock Band ft. H.H Navyogendra Swami Maharaj
Lyrics - Traditional
Singers - HH Navyogendra Swami Maharaj, Nandrani Gopi Devi Dasi, Nav Kishore Nimai Das (Nirdosh Sobti)
Music Composer - Nikhil Ramesh Singh
Flute - Govind prabhu (Mumbai)
Guitar - Nilesh Narsayya Deshwani

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