मैं तो छोड़ आई मायका तुम्हारे लिए Main To Chhod Aayi Mayaka
मैं तो छोड़ आई मायका तुम्हारे लिए,
ओ भोले छोड़ आई मायका तुम्हारे लिए,
ओ तूने मेरी कदर ना जानी प्रिय,
मैं तो छोड़ आई मायका तुम्हारे लिए।
मैंने महल भी छोड़े दो महले भी छोड़े,
हो तुमने पर्वत ना छोड़े हमारे लिए,
ओ तूने मेरी कदर ना जानी प्रिय,
मैं तो छोड़ आई मायका तुम्हारे लिए।
ओ मैंने भर भर के प्याले दूध के छोड़े,
ओ तूने भंगिया ना छोड़ी हमारे लिए,
ओ तूने मेरी कदर ना जानी प्रिय,
मैं तो छोड़ आई मायका तुम्हारे लिए।
मखमल बिछौने मैंने सब छोड़े,
ओ मृग आसन ना छोड़ा हमारे लिए,
ओ तूने मेरी कदर ना जानी प्रिय,
मैं तो छोड़ आई मायका तुम्हारे लिए।
ओ मैंने पूड़ी कचोरी का खाना छोड़ा,
ओ मैंने लड्डूवन पेड़े का खाना छोड़ा,
ओ भांग भोला ना छोड़े हमारे लिए,
ओ तूने मेरी कदर ना जानी प्रिय,
मैं तो छोड़ आई मायका तुम्हारे लिए।
मैंने संग की सहेली सब छोड़ देई,
ओ भूत प्रेत ना छोड़े हमारे लिए,
ओ मैंने बड़े जप तप किये तुम्हारे लिए,
मैं तो छोड़ आई मायका तुम्हारे लिए,
ओ तूने मेरी कदर ना जानी प्रिय,
मैं तो छोड़ आई मायका तुम्हारे लिए।
सावन भजन | मैं तो छोड़ आई मायका तुम्हारे लिए | Shiv Gora Bhajan | Bhole Sawan Bhajan | Kirti Singh
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Title : Mai To Chhod Aayi Mayka Tumhare Liye
Artist : Komal Bhardwaj
Singer : Kirti Singh
Writer and Composition : Traditional
Cameraman : Gulshan Bawa
Edit : Surender Ranga
Music : Kuldeep Mali Aala
Keyboard Player : Sachin Kamal
Song Production Support : Rajesh Madina
Artist : Komal Bhardwaj
Singer : Kirti Singh
Writer and Composition : Traditional
Cameraman : Gulshan Bawa
Edit : Surender Ranga
Music : Kuldeep Mali Aala
Keyboard Player : Sachin Kamal
Song Production Support : Rajesh Madina
भजन माता पार्वती के समर्पण और त्याग का भावपूर्ण चित्रण करता है। इसमें देवी पार्वती अपने प्रिय भगवान शिव के प्रति अपने प्रेम और बलिदान को अभिव्यक्त करती हैं। उन्होंने अपने मायके, सुख-सुविधाओं, महलों, मखमल के बिछौनों, स्वादिष्ट भोजन, और अपनी सहेलियों को छोड़कर कठिन तपस्वी जीवन को अपनाया, केवल शिवजी के साथ रहने के लिए। देवी पार्वती का यह त्याग उनके अनंत प्रेम और दृढ़ भक्ति को दर्शाता है। दूसरी ओर, भोलेनाथ शिव अपने सरल स्वभाव और औघड़ जीवन में मग्न रहते हैं, भांग और भूत-प्रेतों के संग ही संतुष्ट होते हैं।
Author - Saroj Jangir
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