जीण भवानी नैया लगा दे किनारे भजन

जीण भवानी नैया लगा दे किनारे भजन

(मुखड़ा)
जीण भवानी नैया लगा दे किनारे,
लगा दे किनारे।
पहाड़ों वाली नैया लगा दे किनारे,
लगा दे किनारे।
रो-रो के ये बालक तेरा,
कब से तुझे पुकारे,
पहाड़ों वाली नैया लगा दे किनारे,
लगा दे किनारे।।

(अंतरा 1)
तेज बहुत है जीण माँ,
ये तूफ़ान की धारा,
टूट गई पतवार भी,
दूर बहुत है किनारा।
कौन तेरे बिन जीण भवानी,
मुझको पार उतारे?
जीण भवानी नैया लगा दे किनारे,
लगा दे किनारे।।

(अंतरा 2)
दीप जला दे आस का,
मुझको राह दिखा दे,
ज्वाला माई तू ज़रा,
बुझती ज्योत जला दे।
चारों ओर से घेर रहे माँ,
दुख के ये अंधियारे,
जीण भवानी नैया लगा दे किनारे,
लगा दे किनारे।।

(अंतरा 3)
चाहे मैं नादान हूँ,
बेटा हूँ मैं तुम्हारा,
काहे फिराए हे माँ,
दर-दर मुझे आवारा।
मेरे जीवन की है नैया ये,
मैया तेरे सहारे,
जीण भवानी नैया लगा दे किनारे,
लगा दे किनारे।।

(अंतरा 4)
नगरी-नगरी घूम ली माँ,
देखे द्वारे-द्वारे,
जब से देखे जीण माँ,
तेरे दर के नज़ारे।
मन चाहे तेरे द्वार पे 'राजू',
सारी उम्र गुज़ारे,
जीण भवानी नैया लगा दे किनारे,
लगा दे किनारे।।

(पुनरावृत्ति / समापन)
जीण भवानी नैया लगा दे किनारे,
लगा दे किनारे।
पहाड़ों वाली नैया लगा दे किनारे,
लगा दे किनारे।
रो-रो के ये बालक तेरा,
कब से तुझे पुकारे,
पहाड़ों वाली नैया लगा दे किनारे,
लगा दे किनारे।।


Jeene Bhawani Naiya Lagade Kinare

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जीवन की उथल-पुथल भरी धारा में, जब भक्त की नैया तूफानों से घिर जाती है और किनारा दूर दिखाई देता है, तब वह अपनी माँ जीण भवानी की शरण में जाता है। यह पुकार केवल एक माँ से अपने बच्चे के लिए सहारा माँगने की नहीं, बल्कि उस अटल विश्वास की अभिव्यक्ति है, जो भक्त को यह यकीन दिलाता है कि माँ ही उसकी टूटी पतवार को थामकर उसे सुरक्षित किनारे तक ले जाएगी। भक्त का हृदय, जो दुखों और अंधेरों से घिरा है, माँ की कृपा में एक आशा की किरण देखता है। वह माँ से अपने जीवन की ज्योत को पुनः प्रज्वलित करने की प्रार्थना करता है, यह जानते हुए कि माँ की ममता ही उसे हर संकट से पार करा सकती है। यह भक्ति का वह स्वरूप है, जो भक्त को माँ के चरणों में पूर्ण समर्पण के लिए प्रेरित करता है।

माँ के प्रति यह भक्ति नादान मन की सादगी और माँ के प्रति अटूट प्रेम से भरी है। भक्त अपने को माँ का बालक मानता है, जो भले ही भटक गया हो, पर माँ के द्वार पर आकर उसे अपने जीवन का असली ठिकाना मिलता है। वह माँ के दर्शन को अपने जीवन का सबसे बड़ा सुख मानता है और उनके चरणों में अपनी सारी उम्र बिताने की कामना करता है। माँ का वह पवित्र दर, जो पहाड़ों पर विराजमान है, भक्त के लिए एक ऐसी शरणस्थली है, जहाँ उसके सारे दुख और आवारापन मिट जाते हैं। यह भक्ति का वह भाव है, जो माँ की कृपा को भक्त के जीवन की नैया का एकमात्र सहारा बनाता है, और उसे यह विश्वास दिलाता है कि माँ की कृपा से उसका जीवन सदा सुख और शांति की ओर बढ़ेगा।
 
नवरात्रि हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना के लिए मनाया जाता है। यह पर्व नौ दिनों तक चलता है और इन दिनों भक्त उपवास रखते हुए माता की पूजा करते हैं। नवरात्रि का उद्देश्य बुराई पर अच्छाई की विजय और आध्यात्मिक उन्नति है। इस दौरान देशभर के विभिन्न शक्तिपीठों और मंदिरों में विशेष पूजा, भजन-कीर्तन और धार्मिक आयोजन होते हैं। नवरात्रि में माँ दुर्गा की कृपा से भक्तों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह मन को शुद्ध करने और सकारात्मक ऊर्जा से भरने का अवसर भी प्रदान करता है। नवरात्रि के दौरान की गई साधना और भक्ति से व्यक्ति के मनोबल में वृद्धि होती है और वह अपने जीवन के सभी संकटों का सामना धैर्य और विश्वास के साथ कर पाता है।
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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