जान लीजिये शिव से जुड़े अनोखे रहस्य

भगवान शिव: नाम, स्वरूप और अनंत महिमा

भगवान शिव धर्म और संस्कृति के सबसे विशिष्ट और अद्वितीय प्रतीक हैं, वे सृजनकर्ता हैं और अपने भक्तों पर दयालु हैं । भगवान् शिव अनेक नाम जैसे महादेव, भोलेनाथ, नीलकंठ, शंकर और त्रिपुरारी, नामों से जाने जाते हैं और इन नामों से ही भक्त शिव जी को श्रद्धा और आदर से पूजते हैं। शिव जी देवों दे देव हैं महादेव है, लेकिन वे साधारण भक्तों के भी प्रिय आराध्य भी हैं। उनके भोले स्वभाव के कारण उन्हें भोलेनाथ कहा जाता है, क्योंकि वे सच्चे भाव और भक्ति से ही प्रसन्न हो जाते हैं। उनकी पूजा के लिए विशेष नियमों की आवश्यकता नहीं है—महज जल, फूल या बेलपत्र से भी उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है। आइये शिव जी के विषय में रोचक बातों को जान लेते हैं -

जान लीजिये शिव से जुड़े अनोखे रहस्य

शिवलिंग: शिव के निराकार रूप का प्रतीक
शिवलिंग का अर्थ और महत्व बहुत गहन और आध्यात्मिक है। वेदों के अनुसार, शिवलिंग भगवान शिव के निराकार रूप का प्रतीक है, जो सृष्टि के आदि और अंत का मूल कारण माने जाते हैं। शिवलिंग को उस अनंत ब्रह्म का प्रतीक माना गया है, जिसका न कोई रूप है और न आकार। भगवान शिव को साकार रूप में शंकर और निराकार रूप में शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। वायु पुराण में यह उल्लेख है कि प्रलय के समय संपूर्ण सृष्टि शिवलिंग में विलीन हो जाती है और उसी से नए सृजन की शुरुआत होती है। वेदों में लिंग का अर्थ सूक्ष्म शरीर से भी जोड़ा गया है, जो 17 तत्वों से निर्मित होता है। इसलिए शिवलिंग केवल पूजन का साधन नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की अनंतता और सृजन-प्रलय की प्रक्रिया का गहरा प्रतीक है। शिवलिंग भगवान शिव के निराकार और अनंत स्वरूप का जीवंत प्रतीक है। शिवलिंग सृजन और ऊर्जा का आधार माना जाता है। शिवलिंग की पूजा में शंख का उपयोग वर्जित है, क्योंकि यह शंखचूड़ के अस्थियों से बना माना गया है। यह शिव के अनंत और सार्वभौमिक स्वरूप को दर्शाता है।

शिव का भोलापन
भोलेनाथ का नाम उनके सहज स्वभाव का परिचायक है। वे भक्तों की जाति, वर्ण या स्थिति में भेदभाव नहीं करते और देवताओं और असुरों को समान दृष्टि से देखते हैं। सच्चे समर्पण और भक्ति से वे शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव को "भोलेनाथ" उनकी सरलता, दयालुता और निष्पक्षता के कारण कहा जाता है। वे बिना किसी भेदभाव के सभी की प्रार्थना सुनते हैं, चाहे वह देवता हो, मनुष्य हो या दैत्य। भस्मासुर की कहानी इसका उदाहरण है, जहां शिव ने उसकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान दिया।

उनकी भोलापन और सहजता उन्हें हर जीव के लिए समान रूप से करुणामय बनाती है। शिव की यह विशेषता उन्हें सच्चे साधक के लिए आदर्श और "भोलेनाथ" के रूप में पूजनीय बनाती है।

नीलकंठ: करुणा और त्याग का प्रतीक
समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला, तो शिव ने उसे ग्रहण कर लिया ताकि सृष्टि की रक्षा हो सके। इस विष के प्रभाव से उनका गला नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। यह घटना शिव के त्याग और करुणा का प्रतीक है। भगवान शिव को "नीलकंठ" इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने समुद्र मंथन के दौरान निकले घातक विष, हलाहल, को अपने कंठ में धारण किया था। समुद्र मंथन एक महान घटना थी, जिसमें अमृत के साथ-साथ विनाशकारी विष भी निकला। इस विष से पूरी सृष्टि का नाश हो सकता था, लेकिन भगवान शिव ने उसे पिया और अपने कंठ में ही रोक लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया। इस कारण उन्हें "नीलकंठ" कहा जाता है, जिसका अर्थ है "नीला कंठ वाले"। इस कार्य से भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा की और यह सिद्ध किया कि वे किसी भी कठिनाई को सहन कर सकते हैं, बस संपूर्ण जगत की भलाई के लिए।

तांडव नृत्य: सृजन और विनाश का प्रतीक

शिव का तांडव नृत्य ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक है। यह नृत्य सृष्टि के निर्माण, संरक्षण और विनाश के चक्र को दर्शाता है। नटराज रूप में शिव का यह नृत्य संतुलन बनाए रखने की शिक्षा देता है। उनका डमरू, जिससे महेश्वर सूत्र प्रकट हुए, संगीत, छंद और सृष्टि के विस्तार का प्रतीक है।

अर्धनारीश्वर रूप: स्त्री और पुरुष ऊर्जा का संतुलन
अर्धनारीश्वर शिव का अद्भुत स्वरूप है, जिसमें वे शक्ति (पार्वती) के साथ एकाकार दिखाई देते हैं। यह ब्रह्मांड में स्त्री और पुरुष ऊर्जा के सामंजस्य और एकता का प्रतीक है। यह स्वरूप बताता है कि शिव और शक्ति एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं।

शिव के अन्य प्रतीक और उनका महत्व
शिव के तीन नेत्र उनकी अंतर्दृष्टि और ज्ञान का प्रतीक हैं। तीसरा नेत्र खुलने पर संसार की बुराइयों का नाश होता है, जिससे वे त्रिनेत्रधारी कहलाते हैं। उनके जटाओं में विराजमान गंगा उनकी दिव्यता और शीतलता का प्रतीक है। उनका त्रिशूल सृजन, पालन और संहार के तीन गुणों को दर्शाता है। उनके गले का सर्प इच्छाओं पर विजय पाने का प्रतीक है, और उनका वाहन नंदी धर्म और निष्ठा का प्रतीक है।

शिवपुराण के रहस्य
शिवपुराण में शिव से जुड़े गहरे दार्शनिक विचार और मृत्यु के संकेतों का वर्णन मिलता है। यह ग्रंथ उनके जीवन और सिद्धांतों को समझने का मुख्य स्रोत है। उदाहरण के लिए, इसमें बताया गया है कि यदि किसी के सिर पर कौवा, गिद्ध या कबूतर बैठ जाए, तो उसकी मृत्यु निकट हो सकती है। ऐसे रहस्यमय तथ्य मानव जीवन और मृत्यु के चक्र को समझने में सहायता करते हैं।

शिव भक्ति का महत्व

सावन का महीना भगवान शिव की भक्ति के लिए विशेष महत्व रखता है। माना जाता है कि इसी मास में माता पार्वती ने शिव को प्रसन्न कर विवाह किया था। इस दौरान भक्त शिवलिंग पर जल, भस्म, भांग, धतूरा और बेलपत्र चढ़ाकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। श्री श्री रविशंकर के अनुसार, शिव भक्ति का अत्यधिक महत्व है क्योंकि यह आत्म-ज्ञान, आंतरिक शांति, और सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत बनती है। शिव की भक्ति से भक्तों को भय, नकारात्मक विचारों और चिंता से मुक्ति मिलती है। साथ ही, यह आत्मविश्वास, प्रेम, और समर्पण की भावना को बढ़ावा देती है, जो जीवन में सफलता और संतुलन लाती है। शिव भक्ति केवल पूजा तक सीमित नहीं, बल्कि उनके गुणों को जीवन में अपनाने से आध्यात्मिक उन्नति और आनंद मिलता है।

भगवान शिव हैं प्रेरणा के स्त्रोत

शिव का हर स्वरूप हमें जीवन में विनम्रता, त्याग और समर्पण का पाठ सिखाता है। वे सच्चे योगी, गुरु और साधक हैं, जिनका हर कार्य सृष्टि के कल्याण के लिए होता है। उनकी महानता इस बात में है कि वे देवताओं के साथ असुरों के भी पूज्य हैं। श्री शिव जी की पूजा का फल है की भक्त जान पाते हैं की जीवन का वास्तविक उद्देश्य भौतिक सुखों की प्राप्ति नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा से मिलन और सद्कार्य हैं।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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