श्री गोपाल चालीसा श्री कृष्णा जी की बाल लीला
श्री गोपाल चालीसा से भगवान श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं के माध्यम से भक्तों को अद्भुद शक्ति मिलती है। इसमें श्री कृष्ण जी के जन्म, बाल्यकाल की लीलाओं, भक्तों पर उनकी कृपा और राक्षसों के विनाश का सुंदर विवरण दिया गया है। इस चालीसा को श्रद्धा और ध्यानपूर्वक पढ़ने से मानसिक शांति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसे रोज़ाना पढ़ने वाले को दिव्य आनंद की अनुभूति होती है और अंत में श्रीकृष्ण के गोलोक धाम में स्थान प्राप्त होता है।
श्री गोपाल चालीसा
श्री राधापद कमल रज,
सिर धरि यमुना कूल,
वरणो चालीसा सरस,
सकल सुमंगल मूल।
जय जय पूरण ब्रह्म बिहारी,
दुष्ट दलन लीला अवतारी,
जो कोई तुम्हरी लीला गावै,
बिन श्रम सकल पदारथ पावै।
श्री वसुदेव देवकी माता,
प्रकट भये संग हलधर भ्राता,
मथुरा सों प्रभु गोकुल आये,
नन्द भवन मे बजत बधाये।
जो विष देन पूतना आई,
सो मुक्ति दै धाम पठाई,
तृणावर्त राक्षस संहारयौ,
पग बढ़ाय सकटासुर मार्यौ।
खेल खेल में माटी खाई,
मुख मे सब जग दियो दिखाई,
गोपिन घर घर माखन खायो,
जसुमति बाल केलि सुख पायो।
ऊखल सों निज अंग बँधाई,
यमलार्जुन जड़ योनि छुड़ाई,
बका असुर की चोंच विदारी,
विकट अघासुर दियो सँहारी।
ब्रह्मा बालक वत्स चुराये,
मोहन को मोहन हित आये,
बाल वत्स सब बने मुरारी,
ब्रह्मा विनय करी तब भारी।
कालिया नाग नाथि भगवाना,
दावानल को किन्हो पाना,
सखान संग खेलत सुख पायो,
श्रीदामा निज कंधा चढ़ायो।
चीर हरण करि सीख सिखाई,
नख पर गिरिवर लियो उठाई,
दरश यज्ञ पत्निन को दीनो,
राधा प्रेम सुधा सुख लीनो।
नंदहि वरुण लोक सो लायो,
ग्वालों को निज लोक दिखायो,
शरद चंद्र लखि वेणु बजाई,
अति सुख दीनो रास रचाई।
अजगर सों पितु चरण छुड़ायो,
शंखचूड को मणि गिरायो,
हने अरिष्टासुर अरु केशी,
व्योमासुर मार्यो छल वेषी।
व्याकुल ब्रज तजि मथुरा आये,
मारी कंस यदुवंश बसाये,
मात पिता की बंदी छुड़ाई,
संदीपन गृह विद्या पाई।
पुनि पठ्यो ब्रज उधो ज्ञानी,
प्रेम देखि सुधि सकल भुलानी,
किन्हीं कुबरी सुंदर नारी,
हरि लाय रुक्मिणी सुकुमारी।
भौमासुर हनि भक्त छुड़ाये,
सुरन जीती सुरतरु मणि लाये,
दंतवक्र शिशुपाल संहारे,
खग मृग नृग अरु बधिक उघारे।
दीन सुदामा धनपति किन्हो,
पार्थ रथ सारथी यश लीनो,
गीता ज्ञान सिखावन हारे,
अर्जुन मोह मिटावन हारे।
केला भक्त विदुर घर पायो,
युद्ध महाभारत रचवायो,
द्रुपद सुत को चीर बढ़ायो,
गर्भ पारिक्षित जरता बचायो।
कच्छ मच्छ वराह अहिषा,
बावन कल्कि बुद्धि मुनिशा,
है नरसिंह प्रह्लाद उबार्यो,
राम रूप धरि रावण मार्यो।
जय मधु कैटभ दैत्य हनैया,
अंबरीश प्रिय चक्र धरैया,
व्याध अजामिल दीनहे तारी,
शबरी अरु गनिका सी नारी।
गरुड़ासन गज फंद निकंदन,
देहु दरश ध्रुव नयनानंदन,
देहु शुद्ध संतान कर संग,
बढ़ाई प्रेम भक्ति रस रंग।
देहु दिव्य वृंदावन बासा,
छूटे मृग तृष्णा जग आशा,
तुम्हरो ध्यान धरत शिव नारद,
शुक सनकादिक ब्रह्म विशारद।
जय जय राधारमण कृपाल,
हरन सकल संकट भ्रम जाल,
बिनसें विघ्न रोग दुख भारी,
जो सुमरे जगपति गिरधारी।
जो सत बार पढ़े चालीसा,
देहि सकल वांछित फल शीशा,
गोपाल चालीसा पढ़े नित,
नेम सों चित्त लगाय।
सो दिव्य तन धरी अंत महान,
गोलोक धाम सिधवाय,
संसार सुख संपत्ति सकल,
जो भक्तजन सन महान चाहाय।
जयारामदेव सदा ही सो,
गुरुदेव दया सों लहाय,
प्रणत पाल अशरण शरण,
करुणा-सिंधु ब्रजेश,
चालीसा के संग मोहि,
अपनावहु प्राणेश।
इस चालीसा का नित्य पाठ भक्त के जीवन को सकारात्मकता और भक्तिभाव से भर देता है।
श्री राधापद कमल रज,
सिर धरि यमुना कूल,
वरणो चालीसा सरस,
सकल सुमंगल मूल।
जय जय पूरण ब्रह्म बिहारी,
दुष्ट दलन लीला अवतारी,
जो कोई तुम्हरी लीला गावै,
बिन श्रम सकल पदारथ पावै।
श्री वसुदेव देवकी माता,
प्रकट भये संग हलधर भ्राता,
मथुरा सों प्रभु गोकुल आये,
नन्द भवन मे बजत बधाये।
जो विष देन पूतना आई,
सो मुक्ति दै धाम पठाई,
तृणावर्त राक्षस संहारयौ,
पग बढ़ाय सकटासुर मार्यौ।
खेल खेल में माटी खाई,
मुख मे सब जग दियो दिखाई,
गोपिन घर घर माखन खायो,
जसुमति बाल केलि सुख पायो।
ऊखल सों निज अंग बँधाई,
यमलार्जुन जड़ योनि छुड़ाई,
बका असुर की चोंच विदारी,
विकट अघासुर दियो सँहारी।
ब्रह्मा बालक वत्स चुराये,
मोहन को मोहन हित आये,
बाल वत्स सब बने मुरारी,
ब्रह्मा विनय करी तब भारी।
कालिया नाग नाथि भगवाना,
दावानल को किन्हो पाना,
सखान संग खेलत सुख पायो,
श्रीदामा निज कंधा चढ़ायो।
चीर हरण करि सीख सिखाई,
नख पर गिरिवर लियो उठाई,
दरश यज्ञ पत्निन को दीनो,
राधा प्रेम सुधा सुख लीनो।
नंदहि वरुण लोक सो लायो,
ग्वालों को निज लोक दिखायो,
शरद चंद्र लखि वेणु बजाई,
अति सुख दीनो रास रचाई।
अजगर सों पितु चरण छुड़ायो,
शंखचूड को मणि गिरायो,
हने अरिष्टासुर अरु केशी,
व्योमासुर मार्यो छल वेषी।
व्याकुल ब्रज तजि मथुरा आये,
मारी कंस यदुवंश बसाये,
मात पिता की बंदी छुड़ाई,
संदीपन गृह विद्या पाई।
पुनि पठ्यो ब्रज उधो ज्ञानी,
प्रेम देखि सुधि सकल भुलानी,
किन्हीं कुबरी सुंदर नारी,
हरि लाय रुक्मिणी सुकुमारी।
भौमासुर हनि भक्त छुड़ाये,
सुरन जीती सुरतरु मणि लाये,
दंतवक्र शिशुपाल संहारे,
खग मृग नृग अरु बधिक उघारे।
दीन सुदामा धनपति किन्हो,
पार्थ रथ सारथी यश लीनो,
गीता ज्ञान सिखावन हारे,
अर्जुन मोह मिटावन हारे।
केला भक्त विदुर घर पायो,
युद्ध महाभारत रचवायो,
द्रुपद सुत को चीर बढ़ायो,
गर्भ पारिक्षित जरता बचायो।
कच्छ मच्छ वराह अहिषा,
बावन कल्कि बुद्धि मुनिशा,
है नरसिंह प्रह्लाद उबार्यो,
राम रूप धरि रावण मार्यो।
जय मधु कैटभ दैत्य हनैया,
अंबरीश प्रिय चक्र धरैया,
व्याध अजामिल दीनहे तारी,
शबरी अरु गनिका सी नारी।
गरुड़ासन गज फंद निकंदन,
देहु दरश ध्रुव नयनानंदन,
देहु शुद्ध संतान कर संग,
बढ़ाई प्रेम भक्ति रस रंग।
देहु दिव्य वृंदावन बासा,
छूटे मृग तृष्णा जग आशा,
तुम्हरो ध्यान धरत शिव नारद,
शुक सनकादिक ब्रह्म विशारद।
जय जय राधारमण कृपाल,
हरन सकल संकट भ्रम जाल,
बिनसें विघ्न रोग दुख भारी,
जो सुमरे जगपति गिरधारी।
जो सत बार पढ़े चालीसा,
देहि सकल वांछित फल शीशा,
गोपाल चालीसा पढ़े नित,
नेम सों चित्त लगाय।
सो दिव्य तन धरी अंत महान,
गोलोक धाम सिधवाय,
संसार सुख संपत्ति सकल,
जो भक्तजन सन महान चाहाय।
जयारामदेव सदा ही सो,
गुरुदेव दया सों लहाय,
प्रणत पाल अशरण शरण,
करुणा-सिंधु ब्रजेश,
चालीसा के संग मोहि,
अपनावहु प्राणेश।
इस चालीसा का नित्य पाठ भक्त के जीवन को सकारात्मकता और भक्तिभाव से भर देता है।
गोपाल चालीसा Gopal Chalisa with Lyrics | Santan Gopal Mantra | Garbh Sanskar | Krishna Bhajan
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Author - Saroj Jangir
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