दुनिया में ईश्वर एक ही है मुझे क्या लेना हजारों

दुनिया में ईश्वर एक ही है मुझे क्या लेना हजारों से


दुनिया में ईश्वर एक ही है, मुझे क्या लेना हजारों से,
अनहद की धुन बजे घट में, उसे क्या लेना नगाड़ों से।

घट भीतर भगवान बसे, संसार के विषयों की चाह नहीं,
है सम दृष्टि सबके भीतर, उसे सुख-दुःख की परवाह नहीं।

आना-जाना जग रीति है, तुम सीखो बसंत बहारों से,
यहां संग नहीं चलता कोई, तुम मिलते लोग हजारों से।

कोई रहता एक अकेले में, नहीं पड़ता जग के झमेले में,
कोई मोह-माया में बंधकर, रहता है जग के मेले में।

मत करना विश्वास कभी, यहां लोग सभी हैं मतलब के,
स्वार्थ हित रिश्ते जोड़ रहे सब, प्रीति कर ले तू रब से।

कहे सदानंद सांची सुन लो, यह हरि सुमिरन की बेला है,
संग कर्म चले अपने-अपने, और कहां गुरु, कहां चेला है।


दुनिया में ईश्वर एक है मुझे हजारों से क्या लेना || बिल्कुल नया भजन chetavnibhajan

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