धुले धुले गौर चंद हरि गुण गाए गौड़ीय भजन
धुले धुले गौर चंद हरि गुण गाए गौड़ीय वैष्णव भजन
धुले धुले गौर चंद हरि गुण गाए,
आ सिया वृंदावने नाचे गौरा राय।
वृंदावन के तरु लता प्रेमे कहे हरि कथा,
निकुंज के पंछी गली हरि नाम सुनाए।
गौरा बोले हरि हरि शारी बोले हरि हरि,
मुखे मुखे शुक शारी हरि नाम गाए।
हरि नामे मतवाले होके हरिणा आए समीप,
मयूर मयूरी प्रेम में नाच नाच कर खेले।
प्राण में हरि ध्यान में हरि मुख से हरि हरि बोले,
हरिनाम गाते गाते रस में लीन हो जाए।
आ सिया यमुना के तट पर नाचे हरि हरि बोले,
यमुना उमड़कर आए चरण धोने को तैयार।
आ सिया वृंदावने नाचे गौरा राय।
वृंदावन के तरु लता प्रेमे कहे हरि कथा,
निकुंज के पंछी गली हरि नाम सुनाए।
गौरा बोले हरि हरि शारी बोले हरि हरि,
मुखे मुखे शुक शारी हरि नाम गाए।
हरि नामे मतवाले होके हरिणा आए समीप,
मयूर मयूरी प्रेम में नाच नाच कर खेले।
प्राण में हरि ध्यान में हरि मुख से हरि हरि बोले,
हरिनाम गाते गाते रस में लीन हो जाए।
आ सिया यमुना के तट पर नाचे हरि हरि बोले,
यमुना उमड़कर आए चरण धोने को तैयार।
श्री नित्यानंद त्रयोदशी और आगामी श्री गौर पूर्णिमा महोत्सव के अवसर पर श्री गौरांग महाप्रभु का एक विशेष वैष्णव भजन हैं। इसमें श्री चैतन्य महाप्रभु की महिमा का गुणगान करता है जो स्वयं श्रीकृष्ण हैं श्री राधारानी के भाव में। जब चंद्रमा सदृश गौर चंद वृंदावन में पधारते हैं तो वे नृत्य करते हैं झूमते हैं और भगवान हरि की महिमा गाते हैं।
चंद्रमा समान गौर चंद वृंदावन में नृत्य करते हुए, झूमते हुए और भगवान हरि की महिमा गाते हुए आते हैं।
वृंदावन के वृक्षों और लताओं में प्रेम उमड़ आता है और वे भगवान हरि की महिमा का वर्णन करती हैं। निकुंज के पक्षी हरिनाम का मधुर गायन करते हैं।
गौर चंद हरि हरि कहते हैं, एक तोता उत्तर देती है हरि हरि और फिर दो तोते मिलकर हरिनाम का गान करते हैं। हरिनाम की मादकता में मतवाले होकर हिरण वन से बाहर आ जाते हैं, मोर और मोरनियां प्रेम में नृत्य और क्रीड़ा करते हैं। श्री हरि हृदय में श्री हरि ध्यान में और मुख से निरंतर हरिनाम का उच्चारण होता है। गौर चंद हरिनाम में लीन होकर आनंद से झूमते और गिरते पड़ते रहते हैं।
चंद्रमा समान गौर चंद वृंदावन में नृत्य करते हुए, झूमते हुए और भगवान हरि की महिमा गाते हुए आते हैं।
वृंदावन के वृक्षों और लताओं में प्रेम उमड़ आता है और वे भगवान हरि की महिमा का वर्णन करती हैं। निकुंज के पक्षी हरिनाम का मधुर गायन करते हैं।
गौर चंद हरि हरि कहते हैं, एक तोता उत्तर देती है हरि हरि और फिर दो तोते मिलकर हरिनाम का गान करते हैं। हरिनाम की मादकता में मतवाले होकर हिरण वन से बाहर आ जाते हैं, मोर और मोरनियां प्रेम में नृत्य और क्रीड़ा करते हैं। श्री हरि हृदय में श्री हरि ध्यान में और मुख से निरंतर हरिनाम का उच्चारण होता है। गौर चंद हरिनाम में लीन होकर आनंद से झूमते और गिरते पड़ते रहते हैं।
जब वे यमुना के तट पर आते हैं और हरि हरि कहते हुए नृत्य करते हैं, तो माता यमुना आनंदमग्न होकर उमड़ती हैं और आकर श्री गौरांग महाप्रभु के चरणों को धोने लगती हैं।
जय गौरांग जय नित्यानंद हरि बोल।
Dhule Dhule Gaur Chand हरि गुण गाए | Gaudiya Vaishnav Bhajan | Mahaprabhu in Vrindavan | Madhavas
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Song - Dhule Dhule Gaur Chand
Vocals - Nav Kishore Nimai Das (Nirdosh Sobti)
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Author - Saroj Jangir
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