जय महामंगले जय सदा वत्सले विद्याभारती संस्कृत गीत

जय महामंगले जय सदा वत्सले विद्याभारती संस्कृत गीत


जय महामंगले जय सदा वत्सले विद्याभारती संस्कृत गीत
जय महामंगले जय सदा वत्सले,
देवी परमोज्ज्वले भरत भू रूपिणि।

हिमगिरि किरीटिनी सुर तटिनी मालिनी,
जलधि वलयाङ्किते जय जगन्मोहिनी।

भ्रमपटल हारिणि दुर्मोह विध्वंसिनी,
जय सदा शारदे बुद्धि बल दायिनी।

अखिल खल मर्दिनी सुजन बल वर्धिनी,
जय समर चण्डिके रौद्र तनु धारिणी।

सत्य-सावित्री जय पुण्य-गायत्री जय,
विमल सुख धात्री जय दिव्य तेजस्विनी।

वीरवर सेविते योगिजन चिंतिते,
देवगण वन्दिते विश्वहित कारिणी।

मां सरस्वती ज्ञान की देवी हैं। मां हमेशा वात्सल्य से भरी होती हैं और भारतभूमि के रूप में  होती हैं। मां हिमालय को मुकुट की तरह धारण करती हैं और नदियां इनके आभूषण हैं और समुद्र परिधि बनाते हैं। हे जगत को मोहित करने वाली देवी हम आपको नमन करते हैं। मां सरस्वती अज्ञान का अंधकार दूर करती हैं और बुरे विचारों का नाश करती हैं। मां से विनती है कि वो हमें बुद्धि और बल प्रदान करें। मां दुष्टों का नाश करती हैं और सज्जनों की शक्ति बढ़ाती हैं। सत्य और पवित्रता की प्रतीक सावित्री, पुण्य की देवी गायत्री आनंद और शुद्धता की दाता हैं। वीर मां को पूजते हैं योगी उनका मनन करते हैं, देवताओं द्वारा वंदनीय हैं। जय मां सरस्वती।


जय महामंगले जय सदा वत्सले|| विद्याभारती संस्कृत गीत 2025 ||

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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