कान्हा कुंभ मेला में ले चालू रे भजन
कान्हा कुंभ मेला में ले चालू रे भजन
कान्हा कुंभ मेला में ले चालू रे,
तने दिलाय देऊ रेवड़ी,
मैं बड़ा तोलाय देऊ रे।
चालणो है तो चाल सांवरा,
मेलो उमड्यो आज,
तू तो बैठ्यो मिंदरिया में,
दुनिया मौज उड़ाय,
आपा दोनु साथे चाला रे,
तने दिलाय देऊ रेवड़ी,
मैं बड़ा तोलाय देऊ रे।
मेला माही भीड घनेरी,
पकड आंगली चाला,
मोटा मोटा लोग लुगाई,
तू ना मत डर जाना,
आजा गोदया में ले चालू रे,
तने दिलाय देऊ रेवड़ी,
मैं बड़ा तोलाय देऊ रे।
सौ रुपया रा खुला कराय देऊ,
लेले मेलो खरची,
रेवाड़ी री रेवड़ी रे,
दिल्ली की है बरफी,
आपा खाता खाता चाला रे,
तने दिलाय देऊ रेवड़ी,
मैं बड़ा तोलाय देऊ रे।
मेला माही खेल खिलुना,
ओर अलगोजा मोती,
तने दिराय देऊ बांसुरी रे,
मैं ले लेस्यू मोती,
आपा बंसी बजाता,
चाला रे चाला रे,
तने दिलाय देऊ रेवड़ी,
मैं बड़ा तोलाय देऊ रे।
नंद बाबा रा कंवर लाडला,
मानो बात हमारी,
मन मंदिर में आय बिराजो,
राखु हिवडा माही,
नहीं तो ताला में जड़ जाऊ रे,
तने दिलाय देऊ रेवड़ी,
मैं बड़ा तोलाय देऊ रे।
तने दिलाय देऊ रेवड़ी,
मैं बड़ा तोलाय देऊ रे।
चालणो है तो चाल सांवरा,
मेलो उमड्यो आज,
तू तो बैठ्यो मिंदरिया में,
दुनिया मौज उड़ाय,
आपा दोनु साथे चाला रे,
तने दिलाय देऊ रेवड़ी,
मैं बड़ा तोलाय देऊ रे।
मेला माही भीड घनेरी,
पकड आंगली चाला,
मोटा मोटा लोग लुगाई,
तू ना मत डर जाना,
आजा गोदया में ले चालू रे,
तने दिलाय देऊ रेवड़ी,
मैं बड़ा तोलाय देऊ रे।
सौ रुपया रा खुला कराय देऊ,
लेले मेलो खरची,
रेवाड़ी री रेवड़ी रे,
दिल्ली की है बरफी,
आपा खाता खाता चाला रे,
तने दिलाय देऊ रेवड़ी,
मैं बड़ा तोलाय देऊ रे।
मेला माही खेल खिलुना,
ओर अलगोजा मोती,
तने दिराय देऊ बांसुरी रे,
मैं ले लेस्यू मोती,
आपा बंसी बजाता,
चाला रे चाला रे,
तने दिलाय देऊ रेवड़ी,
मैं बड़ा तोलाय देऊ रे।
नंद बाबा रा कंवर लाडला,
मानो बात हमारी,
मन मंदिर में आय बिराजो,
राखु हिवडा माही,
नहीं तो ताला में जड़ जाऊ रे,
तने दिलाय देऊ रेवड़ी,
मैं बड़ा तोलाय देऊ रे।
कुंभ हमारा धार्मिक मेला है जो चार पवित्र स्थानों में से किसी एक पर आयोजित होता है और वे पवित्र स्थान हैं हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन, और नासिक। यह मेला अत्यंत पवित्र माना जाता है, जहां हम गंगा, यमुना और सरस्वती नदी में स्नान करके मोक्ष की कामना करते हैं। कुंभ मेले में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। यहां साधु संत अपने ज्ञान और साधना का प्रदर्शन करते हैं। यहां विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन होते हैं। प्रयागराज कुंभ में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम विशेष महत्व रखता है। यह मेला संस्कृति, परंपरा और आस्था का अद्भुत संगम है। कुंभ 2025 एकता और आध्यात्मिकता का एक भव्य पर्व है इसे आस्था और श्रद्धा और विश्वास से मनाया जा रहा है।
कान्हा कुम्भ मेला में ले चालू रे चालू रे भजन नहीं सुना तो क्या सुना Rajasthani Bhajan @MadhurMarwadi
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Author - Saroj Jangir
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