रटो रे मन छिन छिन राधे नाम
रटो रे मन छिन छिन राधे नाम
रटो रे मन, छिन-छिन राधे नाम।
ब्रह्मादिक की कौन बात, जेहि रटत ब्रह्म घनश्याम।
जेहि रटि महारास-रस पायो, शंकर धरि तनु बाम।
निगम-अगम निधि रसिकन दीनी, बिनुहिं मोल, बिनु दाम।
राधे नाम पुकारत आरत, भाजति तजि निज धाम।
मिल्यो कृपालुहि रतन अमोलक, कहा जगत सों काम।
ब्रह्मादिक की कौन बात, जेहि रटत ब्रह्म घनश्याम।
जेहि रटि महारास-रस पायो, शंकर धरि तनु बाम।
निगम-अगम निधि रसिकन दीनी, बिनुहिं मोल, बिनु दाम।
राधे नाम पुकारत आरत, भाजति तजि निज धाम।
मिल्यो कृपालुहि रतन अमोलक, कहा जगत सों काम।
यह अद्भुत भजन श्री राधा रानी की महिमा का गुणगान करता है और भक्ति मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। इसकी भाषा में भावनात्मक गहराई और काव्यात्मक सौंदर्य है। हे मन! क्षण-क्षण निरन्तर प्रेमपूर्वक राधे नाम का संकीर्तन कर। जिस राधे नाम को ब्रह्मा, विष्णु आदि की कौन कहे स्वयं साक्षात् ब्रह्म- श्रीकृष्ण भी रटा करते हैं जिस राधे नाम को रटकर भगवान् शंकर ने गोपी शरीर धारण करके द्वापर में महारास का रस प्राप्त किया। वेदों में भी अप्राप्य इस राधे नाम की निधि को महापुरुषों ने अकारण कृपा से बिना प्रयास के ही प्रदान कर दिया। भक्त के आर्त-भावयुक्त राधे नाम पुकारते ही किशोरी जी अपना लोक छोड़कर अत्यन्त व्याकुल होकर भागती हुई उसके पास चली आती हैं। ‘श्री कृपालु जी' कहते हैं कि यह राधे नाम रूपी अमूल्य रत्न मुझे तो रसिकों की कृपा से मिल गया है, फिर संसार से क्या काम?
छिनछिन राधे नाम रटो रे मन । ChinChin Radhe Naam Rato Re Maana!!
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Author - Saroj Jangir
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