भागे भागे ना हे माखन चोर पकड़

भागे भागे ना हे माखन चोर पकड़ तोहि बांधूंगी

भागे भागे ना हे माखन चोर पकड़ तोहि बांधूंगी
मेरे घर तू आया कैसे,
यह तो दे बतलाई,
घड़े मटकियां फोड़ी तूने,
गोरस कीच मचाई,
रुक रुक ना मचाऊंगी मैं शोर,
पकड़ि तोहि बाँधूगी,
भागे भागे ना हे माखन चोर,
पकड़ तोहि बांधूंगी।

बाल सखा संग लिये ऊधमी,
करता घर घर चोरी,
पकड़ा जाता तब कर लेता,
अपनी सूरत भोरी,
अरे अरे तू बना है वरजोर,
पकड़ि तोहि बाँधूगी,
भागे भागे ना हे माखन चोर,
पकड़ तोहि बांधूंगी।

लहंगा फरिया पहिन लफंगा,
बन जाता तू छोरी,
करूँ शिकायत देवादास,
तब करता सीना जोरी,
देखो देखो ये हँसत मुख मोर,
पकड़ि तोहि बाँधूगी,
भागे भागे ना हे माखन चोर,
पकड़ तोहि बांधूंगी।

गोपियां अपने प्रिय माखन चोर कृष्ण से प्रेम भरी शिकायत करती हैं। वे कहती हैं कि आज तो तुझे नहीं छोड़ेंगे, पकड़कर बांध ही देंगे। वे कृष्ण की शरारतों का वर्णन करते हुए कहती हैं कि वह कैसे चुपके से उनके घर आता है मटकियां फोड़ता है और माखन फैला देता है। अपने बाल सखा मित्रों के साथ मिलकर वह हर घर में चोरी करता है और पकड़े जाने पर भोली सूरत बना लेता है। गोपियां उसे लहंगा फरिया पहनकर लड़की बनने और फिर बहानेबाजी करने पर भी टोकती हैं। अंत में वे उसके हंसते हुए चेहरे को देखकर भी क्रोधित होते हुए प्रेम से भर जाती हैं, और कहती हैं कि अब चाहे जैसे भी हो उसे बांधकर ही मानेंगी। गोपियों का कान्हा के प्रति स्नेह, शरारत और प्रेम का अनूठा संगम है। जय श्री कृष्ण।


भागे भागे न हे माखनचोर|रचना : प.पू.गुरुदेव श्री स्वामी देवादास जी महाराज|स्वर: #shrikantdasjimaharaj

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गोपियों का कृष्ण के प्रति प्रेम इस भजन में शरारत और स्नेह के रंगों में रंगा है। वे कृष्ण को माखन चोर कहकर पुकारती हैं, जो चुपके से उनके घरों में घुसकर मटकियाँ तोड़ता और माखन चुराता है। यह शरारत केवल खेल नहीं, बल्कि उनके दिलों को जोड़ने का एक प्यारा बंधन है। जैसे एक माँ अपने बच्चे की नटखट हरकतों पर नाराज होने का दिखावा करती है, वैसे ही गोपियाँ कृष्ण को पकड़ने और बांधने की बात कहती हैं, पर उनके मन में गहरा प्रेम उमड़ता है।  

कृष्ण अपने दोस्तों के साथ घर-घर चोरी करता, पकड़े जाने पर भोली सूरत बनाकर सबको हँसाता। यहाँ तक कि लहँगा पहनकर छोरी बनने की उसकी शरारत भी गोपियों को और करीब लाती है। उनकी नकली शिकायतें, जैसे देवदास से कहने की धमकी, प्रेम की गहराई को दर्शाती हैं। कृष्ण का हँसता चेहरा देखकर गोपियाँ क्रोध भूल प्रेम में डूब जाती हैं। यह बंधन भक्ति का प्रतीक है, जहाँ भक्त अपने प्रिय को मन में बाँध लेना चाहता है, ताकि वह कभी दूर न जाए। जय श्री कृष्ण।
 
भागे भागे न हे माखनचोर |
रचना :  प.पू.गुरुदेव श्री स्वामी देवादास जी महाराज ।
स्वर: shrikantdasjimaharaj kudi_dham श्रीकान्त_दास_जी_महाराज
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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