गाड़ी बँगले ये दौलत चले जायेंगे भजन

गाड़ी बँगले ये दौलत चले जायेंगे भजन

 
गाड़ी बँगले ये दौलत चले जायेंगे भजन

(मुखड़ा)
गाड़ी बंगले ये दौलत,
चले जाएंगे।
यारों, माटी में एक दिन,
ये मिल जाएंगे।।

(अंतरा)
गर्व किसका रहा,
पढ़ लो इतिहास को।
लांघ पाए न कोई,
मौत के फांस को।
बन्धु, माता-पिता सब,
चले जाएंगे।
यारों, माटी में एक दिन,
ये मिल जाएंगे।।

(अंतरा)
राजा बलि कोई था,
कोई रावण रहा।
एक कहानी बची,
और कुछ न रहा।
जो हुए हैं धरा में,
वो मिल जाएंगे।
यारों, माटी में एक दिन,
ये मिल जाएंगे।।

(अंतरा)
क्रूर दानव महा,
उधमी कंस था।
मिल गया धूल में,
काल का दंश था।
जन्म लेकर प्रभु,
फिर चले जाएंगे।
यारों, माटी में एक दिन,
ये मिल जाएंगे।।

(अंतरा)
गर्व करना नहीं कांत,
अपना कभी।
प्रेम कर लो तो है,
जग ये अपना सभी।
तेरे अच्छे करम,
जग में रह जाएंगे।
यारों, माटी में एक दिन,
ये मिल जाएंगे।।

(पुनरावृति)
यारों, माटी में एक दिन,
ये मिल जाएंगे।।


भजन : गाड़ी बँगले ये दौलत//दासानुदास श्रीकान्त दास जी महाराज/स्वर:आलोक जी । #chetavni_bhajan

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भजन : गाड़ी बँगले ये दौलत चले जायेंगे
भजन रचना :
दासानुदास श्रीकान्त दास जी महाराज
स्वर:आलोक जी ।
 
यह भजन जीवन की नश्वरता और प्रेम के महत्व का चित्रण करता है। गाड़ी, बंगले, दौलत सब माटी में मिल जाते हैं, क्योंकि कोई भी मृत्यु के फंदे को लाँघ नहीं पाता। इतिहास गवाह है कि राजा बलि, रावण, कंस जैसे महान और क्रूर भी धूल में मिले, केवल उनकी कहानियाँ बचीं। माता-पिता, बंधु, सभी एक दिन चले जाते हैं। प्रभु भी धरा पर जन्म लेकर लौट जाते हैं। गर्व का कोई ठिकाना नहीं, पर प्रेम और अच्छे कर्म साधक को अमर बनाते हैं। यह जीवन का सत्य है कि सब माटी में मिलेगा, पर प्रेम और सत्कर्म साधक के साथ जग में सदा रहते हैं, उसे सच्चा धन प्रदान करते हैं।
 
यह एक अकाट्य सत्य है कि इस जीवन में कमाया गया धन, दौलत, पद और सारी भौतिक वस्तुएँ मृत्यु के बाद हमारे साथ नहीं चलतीं। जब व्यक्ति इस संसार से विदा लेता है, तो उसे सब कुछ यहीं छोड़ जाना पड़ता है—उसके बैंक खाते, आलीशान घर और कीमती सामान। यह वास्तविकता हमें जीवन के सही उद्देश्य पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है। असल में, हमारे साथ जो चलता है, वह हमारे कर्म, हमारा चरित्र और दूसरों के प्रति हमारी करुणा है। इसीलिए, जीवन का सच्चा सार धन के पीछे भागने में नहीं, बल्कि अच्छे कर्मों और सद्गुणों को अर्जित करने में है, जो हमारे साथ शाश्वत रूप से रहते हैं।

मृत्यु के पश्चात कोई भी भौतिक संपत्ति—चाहे वह धन, वैभव, या सांसारिक उपलब्धियाँ हों—हमारे साथ नहीं जाती, मनुष्य को आत्म-मंथन की ओर ले जाता है। यह विचार हमें सिखाता है कि जीवन का मूल्य उन चीजों में नहीं है जो हम एकत्र करते हैं, बल्कि उन कर्मों में है जो हम करते हैं और जो दूसरों के जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। अच्छे कर्म, जैसे दूसरों की सहायता, करुणा, और सत्यनिष्ठा, न केवल हमारे चरित्र को समृद्ध करते हैं, बल्कि हमारी आत्मा को भी शाश्वत शांति और सार्थकता प्रदान करते हैं। यह चिंतन हमें यह प्रेरणा देता है कि जीवन को केवल सांसारिक उपलब्धियों के पीछे दौड़ने में नहीं, बल्कि नैतिकता, प्रेम और भक्ति के मार्ग पर चलकर सार्थक बनाना चाहिए। 
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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