माँ मंगलाकरनी साथ है फिर डरने की क्या बात

माँ मंगलाकरनी साथ है फिर डरने की क्या बात है

(मुखड़ा)
माँ मंगलाकरनी साथ है, फिर डरने की क्या बात है।
बच्चों की माँ चिंता हरती, हरती हाथों हाथ है।
माँ मंगलाकरनी साथ है, फिर डरने की क्या बात है।।

(अंतरा 1)
बड़े ही किस्मत वाले भक्तों, माँ की शरण में आते हैं।
माँ का दर्शन करके वो, दुखों से मुक्ति पाते हैं।
रहमत वाले मोती मैया, बांट रही दिन-रात है।
माँ मंगलाकरनी साथ है, फिर डरने की क्या बात है।।

(अंतरा 2)
बाल भी बांका होता ना उनका, जपते माँ का नाम जो।
हर पल मैया अंग-संग रहती, करते माँ का ध्यान जो।
जो भी मन से सुनता माँ को, सुनती उनकी बात है।
माँ मंगलाकरनी साथ है, फिर डरने की क्या बात है।।

(अंतरा 3)
गुफा में बैठके पूरी करती, भक्तों के सवालों को।
बिन मांगे ही सब कुछ देती, दर पे आने वालों को।
खुशियों वाली माँ के दर पे, होती जब बरसात है।
माँ मंगलाकरनी साथ है, फिर डरने की क्या बात है।।

(अंतरा 4)
बांह पकड़ के बच्चों की, माँ लेती आप संभाल माँ।
कैसा भी हो संकट, नीले पल में देती टाल माँ।
सुखी रहे माँ सबका जीवन, यह मैया की सौगात है।
माँ मंगलाकरनी साथ है, फिर डरने की क्या बात है।।

(पुनरावृत्ति)
माँ मंगलाकरनी साथ है, फिर डरने की क्या बात है।
बच्चों की माँ चिंता हरती, हरती हाथों हाथ है।।


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माँ का साथ वह अडिग सहारा है, जो हर भय को मिटा देता है, जैसे माता अपने बच्चे को सीने से लगाकर हर आँधी से बचाती है। यह भाव है कि माँ की कृपा से जीवन का हर संकट क्षणभर में दूर हो जाता है।

माँ की शरण में आने वाला कोई खाली नहीं लौटता। जैसे बारिश धरती को हरा-भरा करती है, वैसे ही माँ की रहमत भक्तों के जीवन को सुख और शांति से भर देती है। यह सीख है कि सच्ची भक्ति मन को इतना बल देती है कि कोई दुख उसे विचलित नहीं कर सकता। माँ का नाम जपने वाला, उनका ध्यान करने वाला सदा उनकी छत्रछाया में सुरक्षित रहता है, जैसे वृक्ष की छाँव में यात्री को सुकून मिलता है।

माँ गुफा में बैठकर भक्तों की हर पुकार सुनती है, बिना माँगे ही सब कुछ देती है। यह विश्वास है कि माँ का दर खुशियों की वर्षा करने वाला है, जहाँ हर इच्छा पूरी होती है। माँ अपने बच्चों की बाँह थामकर हर मुश्किल में साथ देती है, यह प्रेम और करुणा का वह बंधन है, जो जीवन को सौगातों से भर देता है। 

Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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