सच्चा ज्ञान वही है, जो निकटता से, प्रेम और समर्पण से ग्रहण किया जाए, जैसे शिष्य गुरु के चरणों में बैठकर उनकी वाणी को हृदय में उतारता है। यह भाव है कि जो पास रहकर सीखता है, वह जीवन भर उस ज्ञान का प्रकाश पाता है, पर जो दूर रहता है, वह सतही समझ तक सीमित रह जाता है।
गुरु के चरणों में सिर झुकाने का अर्थ है अहंकार को त्यागकर मन को शुद्ध करना। यह सीख है कि विनम्रता ही ज्ञान का द्वार खोलती है, जैसे नदी का पानी नीचे की ओर ही बहता है।
भजन : करीब से जिसने ज्ञान सीखा । भजन रचना : दासानुदास श्रीकान्त दास जी महाराज । स्वर : आलोक जी ।
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