मोह का बंधन क्षणिक है, जैसे रेत का महल जो लहरों से बिखर जाता है। इस जगत के रिश्ते-नाते, जिन्हें हम सदा का साथी मानते हैं, एक दिन साथ छोड़ देते हैं। दौलत, जो आँखों को चकाचौंध करती है, अंत में खाली हाथ छोड़ जाती है। सच्चाई यही है कि जो आज अपना लगता है, वह कल दूर हो सकता है।
जगत में सुख की तलाश में हर कोई भटकता है, पर दुख की छाया सबके पीछे चलती है। जैसे कोई पथिक रात में तारों को देखकर राह खोजे, वही प्रभु का स्मरण मन को उजाला देता है। प्रभु का नाम लेने से मन की हर पीड़ा हल्की हो जाती है, और दुख के बंधन टूट जाते हैं।
जीवन का असली उद्देश्य तब पूरा होता है, जब मन प्रभु की भक्ति में रम जाए। जैसे नदी सागर में मिलकर अपनी पहचान पाती है, वैसे ही भक्ति में डूबा मन मोह के जाल से मुक्त हो जाता है। प्रभु का ध्यान ही वह दीप है, जो अंधेरे को चीरकर सत्य का मार्ग दिखाता है।
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