न भटको मोह से प्यारे ये रिश्ते टूट जाएँगे
न भटको मोह से प्यारे ये रिश्ते टूट जाएँगे भजन
(मुखड़ा)
न भटको मोह से प्यारे,
ये रिश्ते टूट जाएँगे।
जिन्हें अपने समझते हो,
कभी वे रूठ जाएँगे।
(पुनरावृति)
न भटको...
(अंतरा)
जगत के रिश्ते-नाते सब,
ये छूटेंगे मरोगे जब।
जिसे दौलत समझते हो,
कभी सब लूट जाएँगे।
न भटको...
सभी विपदा से रोते हैं,
नहीं कोई सुखी जग में।
अगर प्रभु को सुमिर ले तो,
तेरे ग़म छूट जाएँगे।
न भटको...
सफल नर जन्म करना हो,
तो प्रभु की भक्ति कर लेना।
कान्त यदि ध्यान यह धर ले,
मोह सब छूट जाएँगे।
न भटको...
न भटको मोह से प्यारे,
ये रिश्ते टूट जाएँगे।
जिन्हें अपने समझते हो,
कभी वे रूठ जाएँगे।
(पुनरावृति)
न भटको...
(अंतरा)
जगत के रिश्ते-नाते सब,
ये छूटेंगे मरोगे जब।
जिसे दौलत समझते हो,
कभी सब लूट जाएँगे।
न भटको...
सभी विपदा से रोते हैं,
नहीं कोई सुखी जग में।
अगर प्रभु को सुमिर ले तो,
तेरे ग़म छूट जाएँगे।
न भटको...
सफल नर जन्म करना हो,
तो प्रभु की भक्ति कर लेना।
कान्त यदि ध्यान यह धर ले,
मोह सब छूट जाएँगे।
न भटको...
चेतावनी भजन : न भटको मोह से प्यारे//रचना : दासानुदास श्रीकान्त दास जी महाराज । स्वर : गायत्री ।
ऐसे ही अन्य भजनों के लिए आप होम पेज / गायक कलाकार के अनुसार भजनों को ढूंढें.
पसंदीदा गायकों के भजन खोजने के लिए यहाँ क्लिक करें।
ऐसे ही अन्य भजनों के लिए आप होम पेज / गायक कलाकार के अनुसार भजनों को ढूंढें.
पसंदीदा गायकों के भजन खोजने के लिए यहाँ क्लिक करें।
मोह का बंधन क्षणिक है, जैसे रेत का महल जो लहरों से बिखर जाता है। इस जगत के रिश्ते-नाते, जिन्हें हम सदा का साथी मानते हैं, एक दिन साथ छोड़ देते हैं। दौलत, जो आँखों को चकाचौंध करती है, अंत में खाली हाथ छोड़ जाती है। सच्चाई यही है कि जो आज अपना लगता है, वह कल दूर हो सकता है।
जगत में सुख की तलाश में हर कोई भटकता है, पर दुख की छाया सबके पीछे चलती है। जैसे कोई पथिक रात में तारों को देखकर राह खोजे, वही प्रभु का स्मरण मन को उजाला देता है। प्रभु का नाम लेने से मन की हर पीड़ा हल्की हो जाती है, और दुख के बंधन टूट जाते हैं।
जीवन का असली उद्देश्य तब पूरा होता है, जब मन प्रभु की भक्ति में रम जाए। जैसे नदी सागर में मिलकर अपनी पहचान पाती है, वैसे ही भक्ति में डूबा मन मोह के जाल से मुक्त हो जाता है। प्रभु का ध्यान ही वह दीप है, जो अंधेरे को चीरकर सत्य का मार्ग दिखाता है।
जगत में सुख की तलाश में हर कोई भटकता है, पर दुख की छाया सबके पीछे चलती है। जैसे कोई पथिक रात में तारों को देखकर राह खोजे, वही प्रभु का स्मरण मन को उजाला देता है। प्रभु का नाम लेने से मन की हर पीड़ा हल्की हो जाती है, और दुख के बंधन टूट जाते हैं।
जीवन का असली उद्देश्य तब पूरा होता है, जब मन प्रभु की भक्ति में रम जाए। जैसे नदी सागर में मिलकर अपनी पहचान पाती है, वैसे ही भक्ति में डूबा मन मोह के जाल से मुक्त हो जाता है। प्रभु का ध्यान ही वह दीप है, जो अंधेरे को चीरकर सत्य का मार्ग दिखाता है।
|
Author - Saroj Jangir
इस ब्लॉग पर आप पायेंगे मधुर और सुन्दर भजनों का संग्रह । इस ब्लॉग का उद्देश्य आपको सुन्दर भजनों के बोल उपलब्ध करवाना है। आप इस ब्लॉग पर अपने पसंद के गायक और भजन केटेगरी के भजन खोज सकते हैं....अधिक पढ़ें। |
