भक्ति का सावन वह पवित्र समय है, जब मन निर्मल होकर प्रभु के रंग में रंग जाता है। यह वह क्षण है, जब तन और मन की सारी मलिनता धुल जाती है, जैसे वर्षा की बूँदें धरती को शुद्ध करती हैं। जीवन का असली मोल तभी है, जब हर साँस प्रभु के नाम से सज जाए।
माया का जाल बड़ा चंचल है। यह धन, मान, और लोभ के रंग दिखाकर मन को भटकाता है। जैसे कोई यात्री चमकते मृगतृष्णा के पीछे दौड़े और अंत में प्यासा रह जाए, वही हाल माया में फँसे मन का होता है। इस जाल से मुक्त होने का एकमात्र रास्ता है—प्रभु की भक्ति में डूब जाना।
धन की चकाचौंध क्षणिक है, पर धर्म का प्रकाश अनंत है। जो सत्कर्मों का दीप जलाता है, वह न केवल अपने जीवन को उज्ज्वल करता है, बल्कि संसार के बंधनों से भी मुक्त हो जाता है। जैसे कोई नाविक तूफान में भी किनारे की ओर बढ़ता है, वैसे ही सच्चे कर्मों से प्रभु का किनारा मिलता है।
सदाचार जीवन का वह आधार है, जो मन को स्थिर और पवित्र रखता है। जो इस मार्ग पर चलता है, वह ईश्वर को नहीं खोजता, बल्कि ईश्वर स्वयं उस तक पहुँच जाते हैं। यह मन का वह संयम है, जो प्रभु के द्वार तक ले जाता है। जब मन प्रभु के अधीन हो, तभी सच्चा सावन खिलता है, और जीवन धन्य हो जाता है।
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