जबसे किया भरोसा मैंने मेरे बने सब काम

जबसे किया भरोसा मैंने मेरे बने सब काम

 
जबसे किया भरोसा मैंने मेरे बने सब काम

जबसे किया भरोसा मैंने,
मेरे बने सब काम,
सुख~दुख का मेरे साथी बन गया,
मेरा खाटू वाला श्याम,
प्रेम का तार न टूटे,
कभी दरबार न छूटे।।

इनके भरोसे अपना,
छोड़ा परिवार ये सारा,
जब साथी मेरा कन्हैया,
क्यों ढूंढूं और सहारा,
श्याम प्रभु की सेवा करके,
मिला मुझे सम्मान,
प्रेम का तार न टूटे,
कभी दरबार न छूटे।।

इनके भरोसे मैंने,
ये जीवन नाव चलाई,
चाहे कितने तूफां आए,
पर नाव ने मंज़िल पाई,
सांवरिए ने करके दया,
थाम ली है पतवार,
प्रेम का तार न टूटे,
कभी दरबार न छूटे।।

मेरी हर पल चिंता,
करता है खाटू वाला,
कहता रोमी सबसे,
मेरा श्याम बड़ा दिलवाला,
सेठों के इस सेठ से मेरी,
हो गई है पहचान,
प्रेम का तार न टूटे,
कभी दरबार न छूटे।।

जबसे किया भरोसा मैंने,
मेरे बने सब काम,
सुख~दुख का मेरे साथी बन गया,
मेरा खाटू वाला श्याम,
प्रेम का तार न टूटे,
कभी दरबार न छूटे।।


जबसे किया भरोसा मैंने मेरे बन गए काम | Khatu Shyam Bhajan | Jab Se Kiya Bharosa Maine| Sardar Romi

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Song: Jabse Kiya Bharosa Maine (D-1759)
Singer: Sardar Romi
Category: Hindi Devotional (Khatu Shyam Bhajan)
Producers: Amresh Bahadur - Ramit Mathur
Label : Yuki
 
प्रभु के भरोसे चलने वाला भक्त जीवन की हर चुनौती को एक नाविक की तरह पार करता है, जिसकी पतवार प्रभु की दया के हाथों में होती है। चाहे कितने ही तूफान आएँ, भक्त का विश्वास डगमगाता नहीं, क्योंकि वह जानता है कि प्रभु उसकी नाव को मंजिल तक पहुँचाएँगे। यह आस्था भक्त को यह सिखाती है कि प्रभु का प्रेम और करुणा इतनी विशाल है कि वह हर पल उसकी चिंता करता है और उसे हर कठिनाई से उबारता है। भक्त का यह विश्वास कि प्रभु सेठों का सेठ है, और उनकी कृपा से ही उसे सच्ची पहचान और आनंद प्राप्त हुआ है, यह दर्शाता है कि सच्ची भक्ति में ही जीवन का सच्चा सुख और पूर्णता निहित है। यह भावना भक्त को प्रभु के साथ एक अटूट प्रेम के तार से जोड़ती है, जो उसे जीवन के हर पड़ाव पर साहस, शांति और दिशा प्रदान करता है।

यह विश्वास सांसारिक बंधनों से परे ले जाता है, जहाँ वह परिवार और संसार की माया को छोड़कर केवल प्रभु की शरण में शांति और सम्मान पाता है। प्रभु की सेवा और उनके प्रति प्रेम का यह बंधन इतना प्रगाढ़ है कि भक्त की हर साँस उनकी भक्ति में समर्पित हो जाती है, और वह प्रभु के दरबार से कभी दूर नहीं होना चाहता। यह भक्ति न केवल जीवन को दिशा देती है, बल्कि भक्त को यह अनुभूति कराती है कि प्रभु की कृपा ही उसका सबसे बड़ा सहारा और सम्मान है। 
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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