चाँदी का पालना लायो मारा सेठ जी भजन

चाँदी का पालना लायो मारा सेठ जी भजन

(मुखड़ा)
चाँदी का पालना,
लायो मारा सेठ जी,
झूलो थे साँवरिया,
मंडफ़िया के माये रे थे,
झूलो रे साँवरिया।

(अंतरा 1)
पहलो झूलो साँवरिया,
यशोदा जी झुलावे,
झूलो मारा सेठ जी,
मंडफ़िया के माये रे थे,
झूलो रे साँवरिया।

(अंतरा 2)
दूजो झूलो साँवरिया,
गोपियाँ झुलावे,
झूलो मारा सेठ जी,
मंडफ़िया के माये रे थे,
झूलो रे साँवरिया।

(अंतरा 3)
तीसरो झूलो साँवरिया,
राधा जी झुलावे,
झूलो मारा सेठ जी,
मंडफ़िया के माये रे थे,
झूलो रे साँवरिया।

(अंतरा 4)
चोथो झूलो साँवरिया,
वासु शर्मा झुलावे,
झूलो मारा सेठ जी,
मंडफ़िया के माये रे थे,
झूलो रे साँवरिया।

(अंतरा 5)
पाचवो झूलो साँवरिया,
दीपक राजस्थानी झुलावे,
झूलो मारा सेठ जी,
मंडफ़िया के माये रे थे,
झूलो रे साँवरिया।

(मुखड़ा पुनः)
चाँदी का पालना,
लायो मारा सेठ जी,
झूलो थे साँवरिया,
मंडफ़िया के माये रे थे,
झूलो रे साँवरिया।


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साँवरिया का चाँदी का पालना प्रेम और भक्ति का वह झूला है, जिसमें हर भक्त उन्हें झुलाकर आनंद पाता है। यशोदा माँ की ममता, गोपियों का स्नेह, राधा का प्रेम, और भक्तों जैसे वासु शर्मा व दीपक राजस्थानी की भक्ति—सब मिलकर साँवरिया को झुलाते हैं। यह झूला केवल लकड़ी और चाँदी का नहीं, बल्कि हृदय के समर्पण और प्रेम का प्रतीक है। मंडफिया के माये में साँवरिया का झूलना सिखाता है कि प्रभु को अपने प्रेम से सजाकर, उनकी सेवा में डूबकर ही जीवन का सच्चा सुख मिलता है। यह भक्ति का रस है, जो हर भक्त को साँवरिया के साथ झूलने की ललक देता है, और उनके प्रेम में डोलते हुए मन को आनंदमय बनाता है।
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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