
भोले तेरी भक्ति का अपना ही
दूरि ते ताहि सबन्हि सिर नावा। पूछें निज बृत्तांत सुनावा।। तेहिं तब कहा करहु जल पाना। खाहु सुरस सुंदर फल नाना।। मज्जनु कीन्ह मधुर फल खाए। त...
उमा राम सम हित जग माहीं। गुरु पितु मातु बंधु प्रभु नाहीं।। सुर नर मुनि सब कै यह रीती। स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती।। बालि त्रास ब्याकुल दिन...
जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी।। निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरु समाना।। जिन्ह कें असि मति ...
किष्किन्धा काण्ड ।।राम।। श्रीगणेशाय नमः श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीरामचरितमानस चतुर्थ सोपान ( किष्किन्धाकाण्ड) श्लोक कुन्देन्दीवरसुन...