रख लाज मेरी गणपति अपनी शरण
रख लाज मेरी गणपति अपनी शरण में लीजिए भजन
रख लाज मेरी गणपति,
अपनी शरण में लीजिए।
कर आज मंगल गणपति,
अपनी कृपा अब कीजिए॥
रख लाज मेरी गणपति
रख लाज मेरी गणपति
सिद्धि विनायक दुःख हरण,
संताप हारी सुख करण।
करूँ प्रार्थना मैं नित्त प्रति,
वरदान मंगल दीजिए॥
रख लाज मेरी गणपति,
अपनी शरण में लीजिए।
कर आज मंगल गणपति,
अपनी कृपा अब कीजिए॥
रख लाज मेरी गणपति
तेरी दया, तेरी कृपा,
हे नाथ हम मांगे सदा।
तेरे ध्यान में खोवे मति,
प्रणाम मम अब लीजिए॥
रख लाज मेरी गणपति,
अपनी शरण में लीजिए।
कर आज मंगल गणपति,
अपनी कृपा अब कीजिए॥
रख लाज मेरी गणपति
करते प्रथम तव वंदना,
तेरा नाम है दुःख भंजना।
करना प्रभु मेरी शुभ गति,
अब तो शरण मे लीजिए॥
रख लाज मेरी गणपति,
अपनी शरण में लीजिए।
कर आज मंगल गणपति,
अपनी कृपा अब कीजिए॥
रख लाज मेरी गणपति
रख लाज मेरी गणपति
अपनी शरण में लीजिए।
कर आज मंगल गणपति,
अपनी कृपा अब कीजिए॥
रख लाज मेरी गणपति
रख लाज मेरी गणपति
सिद्धि विनायक दुःख हरण,
संताप हारी सुख करण।
करूँ प्रार्थना मैं नित्त प्रति,
वरदान मंगल दीजिए॥
रख लाज मेरी गणपति,
अपनी शरण में लीजिए।
कर आज मंगल गणपति,
अपनी कृपा अब कीजिए॥
रख लाज मेरी गणपति
तेरी दया, तेरी कृपा,
हे नाथ हम मांगे सदा।
तेरे ध्यान में खोवे मति,
प्रणाम मम अब लीजिए॥
रख लाज मेरी गणपति,
अपनी शरण में लीजिए।
कर आज मंगल गणपति,
अपनी कृपा अब कीजिए॥
रख लाज मेरी गणपति
करते प्रथम तव वंदना,
तेरा नाम है दुःख भंजना।
करना प्रभु मेरी शुभ गति,
अब तो शरण मे लीजिए॥
रख लाज मेरी गणपति,
अपनी शरण में लीजिए।
कर आज मंगल गणपति,
अपनी कृपा अब कीजिए॥
रख लाज मेरी गणपति
रख लाज मेरी गणपति
Rakh laaj meri Ganpati- Hari Om Sharan रख लाज मेरी गणपति - हरि ओम शरण
Rakh Laaj Meree Ganapati,
Apanee Sharan Mein Leejie.
Kar Aaj Mangal Ganapati,
Apanee Krpa Ab Keejie.
Apanee Sharan Mein Leejie.
Kar Aaj Mangal Ganapati,
Apanee Krpa Ab Keejie.
गणपति, तुम विघ्नहर्ता हो, हर संकट को दूर करने वाले। तुम्हारी शरण में आकर मन का हर डर मिट जाता है, जैसे सुबह की किरणें रात का अंधेरा हटाती हैं। तुम्हारी कृपा वह मंगलकारी शक्ति है, जो जीवन को सुख और शांति से भर देती है।
संत की तरह पुकारता हूँ—हर दिन तुम्हारी वंदना करूँ, क्योंकि तुम्हारा नाम ही दुखों का हरण करता है। चिंतक का मन कहता है—जब गणपति का ध्यान हृदय में बस जाए, तो हर कार्य सहज सिद्ध होता है। धर्मगुरु की सीख है—नित्य प्रार्थना करो, सच्चे मन से उनकी शरण लो, क्योंकि उनकी दया हर संताप को मिटा देती है।
हे सिद्धिविनायक, मेरी लाज रखो। मेरा मन तुममें लीन हो, मेरे प्रणाम को स्वीकार करो। तुम्हारे चरणों में शरण माँगता हूँ—मुझे वह मंगल वरदान दो, जिससे मेरा जीवन तुम्हारे नाम से सदा आलोकित रहे।
संत की तरह पुकारता हूँ—हर दिन तुम्हारी वंदना करूँ, क्योंकि तुम्हारा नाम ही दुखों का हरण करता है। चिंतक का मन कहता है—जब गणपति का ध्यान हृदय में बस जाए, तो हर कार्य सहज सिद्ध होता है। धर्मगुरु की सीख है—नित्य प्रार्थना करो, सच्चे मन से उनकी शरण लो, क्योंकि उनकी दया हर संताप को मिटा देती है।
हे सिद्धिविनायक, मेरी लाज रखो। मेरा मन तुममें लीन हो, मेरे प्रणाम को स्वीकार करो। तुम्हारे चरणों में शरण माँगता हूँ—मुझे वह मंगल वरदान दो, जिससे मेरा जीवन तुम्हारे नाम से सदा आलोकित रहे।
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Author - Saroj Jangir
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