भजन बिना कोई न जागै रे भजन

भजन बिना कोई न जागै रे भजन


भजन बिना कोई न जागै रे, लगन बिना कोई न जागै रै,
तेरा जनम जनम का पाप करेड़ा, रंग किस बिध लागे रै,
संता की संगत करी कोनी भँवरा, भरम कैयाँ भागै रै,
राम नाम की सार कोनी जाणै, बाताँ मे आगै रै,
या संसार काल वाली गीन्डी, टोरा लागे रै,
गुरु गम चोट सही कोनी जावै, पगाँ ने लागे रै,
सत सुमिरण का सैल बणाले, संता सागे रै,
नार सुषमणा राड़ लडै जद, जमड़ा भागै रै,
नाथ गुलाब सत संगत करले, संता सागे रै,
भानीनाथ अरज कर गावै, सतगुराँजी के आगै रै,
 

Vikash nath ji bhajan //जरूर सुने भजन बिना कोई न जागे रे

बस बात जरासी, होसी लिखी रे तकदीर॥टेर॥
लिखी करम की कैयां टलसी, तेरो जोर कठे ताई चलसी
दुरमत करयां रे घणो जी बलसी, दुरमत छोड़ो मेरा बीर॥1॥
तूँ क्यूँ धन की खातिर भागे, किस्मत तेरे सागे सागे
तूँ सोवे तो भी या जागे थ्यावस ले ले मेरा बीर॥2॥
तेरो मन चोखी खाने पर, छाप लगी दाने दाने पर
मिल जासी मौको आने पर,जिस रे दाने मे तेरो सीर॥3॥
के चावे तू चोखा संगपन, के चावे तूँ मान बड़प्पन
होवे एक विचारे छप्पन, शंभु भजो रे रघुवीर॥4॥
नर छोड़ दे कपट के जाल, बताऊँ तनै तिरणे की तदबीर ॥टेर।
हरि की माला ऐसे रटणी, जैसे बांस पर चढज्या नटनी
मुश्किल है या काया डटनी, डटै तो परले तीर॥1॥
गऊ चरणे को जाती बन मे, बछडे को छोड़ दिया अपणे भवन मे
सुरत लगी बछड़े की तन मे, जैसे शोध शरीर॥2॥
जल भरने को जाती नारी, सिर पर घड़ो घड़ै पर झारी
हाथ जोड़ बतलावे सारी, मारग जात वही॥3॥
गंगादास कथै अविनाशी, गंगादास का गुरु संयासी
राम भजे से कटज्या फांसी, कालु राम कहीं॥4॥

भजन की धुन और सत्संग की शीतल छाँव के बिना मन का अंधेरा दूर नहीं होता। यह सच्चाई सिखाती है कि सच्चा जागरण केवल भक्ति और लगन से ही संभव है। जैसे कोई दीया बिना तेल के नहीं जलता, वैसे ही जीवन बिना राम नाम के रंग में नहीं रंगता। जनम-जनम के पापों का बोझ तब तक हल्का नहीं होता, जब तक मन संतों की संगति में नहीं डूबता।

संसार की यह माया एक काल की गेंद है, जो हर पल भटकाती है। बिना गुरु के मार्गदर्शन के मन भ्रम के जाल में उलझा रहता है। जैसे कोई पथिक बिना नक्शे के भूल भटकता है, वैसे ही बिना सत्संग के जीवन दिशाहीन हो जाता है। यह चिंतन मन को यह शिक्षा देता है कि सत्य का सुमिरन और संतों का साथ ही वह सेतु है, जो मन को माया के बंधनों से मुक्त करता है।

सत्संग में बैठकर, राम नाम का सुमिरन करते हुए, मन की सुषुम्ना नाड़ी जाग उठती है, और भय का जमघट भाग जाता है। यह भक्ति केवल गीत नहीं, बल्कि आत्मा का आलिंगन है, जो हर भक्त को सतगुरु के चरणों तक ले जाता है। संतों के साथ उठने-बैठने से मन गुलाब-सा महक उठता है, और जीवन का हर क्षण एक अर्जना बन जाता है, जो सदा सत्य के सामने नतमस्तक रहता है।
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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