मैं हरि पतित पावन भजन

मैं हरि पतित पावन भजन

हरि, पतित पावन सुने ।
मैं पतित, तुम पतित-पावन, दोउ बानक बने॥
ब्याध गनिका गज अजामिल, साखि निगमनि भने।
और अधम अनेक तारे, जात कापै गने॥
जानि नाम अजानि लीन्हें नरक जमपुर मने।
दास तुलसी सरन आयो राखिये अपने॥
हरि, पतित पावन सुने ।
मैं पतित, तुम पतित-पावन, दोउ बानक बने॥
ब्याध गनिका गज अजामिल, साखि निगमनि भने।
और अधम अनेक तारे, जात कापै गने॥
जानि नाम अजानि लीन्हें नरक जमपुर मने।
दास तुलसी सरन आयो राखिये अपने॥



Main Hari Patit Pawan Sune -- Urvi K Sashwati

हरि, पतितों के पावन, दयालु स्वामी, हर पुकार को सुनते हैं। भक्त पतित हो, पर हरि का नाम उसे शुद्ध करता है, जैसे गंगा मैल धो देती है। ब्याध, गणिका, गज, अजामिल—निगम इनके उद्धार की साक्षी देते हैं। असंख्य अधमों को हरि ने तारा, उनकी कृपा की गिनती असंभव है।

जानकर या अनजाने में लिया गया हरि का नाम नरक से बचा लेता है, यमपुरी की सैर मिटा देता है। तुलसीदास, दास बनकर, हरि के चरणों में शरण माँगता है—मुझे अपनाओ, रक्षा करो। यह भजन सिखाता है कि हरि का नाम ही सच्चा सहारा है। सच्चे मन से उनकी शरण लो, सारे बंधन टूट जाते हैं। हरि सदा भक्त के साथ हैं, बस प्रेम से पुकारो।

Sang by the talented composer, choreographer and singer Urvi K Sashwati. She was brought up in the Classical tradition under close supervision of Dr S R Bagchi & Mrs B Bagchi, her parents and teachers.
She is acclaimed today as the most creative artist who with an Indian Classical background has the potential of exploring and creating today's music.

Next Post Previous Post