मन तड़पत हरि दरसन को आज भजन लिरिक्स

मन तड़पत हरि दरसन को आज लिरिक्स Man Tadpat Hari darshan Ko Aaj Lyrics

 
मन तड़पत हरि दरसन को आज लिरिक्स Man Tadpat Hari darshan Ko Aaj Lyrics

मन तड़पत हरि दरसन को आज,
मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज
आ, विनती करत, हूँ, रखियों लाज, मन तड़पत,
मन तड़पत हरि दरसन को आज,
मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज।

तुम्हरे द्वार का मैं हूँ जोगी
हमरी ओर नज़र कब होगी
सुन मोरे व्याकुल मन की बात, तड़पत हरी दरसन,
मन तड़पत हरि दरसन को आज,
मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज।

बिन गुरू ज्ञान कहाँ से पाऊँ
दीजो दान हरी गुन गाऊँ
सब गुनी जन पे तुम्हारा राज, तड़पत हरी,
मन तड़पत हरि दरसन को आज,
मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज।

मुरली मनोहर आस न तोड़ो
दुख भंजन मोरे साथ न छोड़ो
मोहे दरसन भिक्षा दे दो आज दे दो आज
मन तड़पत हरि दरसन को आज,
मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज।

man tarpat hai hari darshan ko aaj.. Baiju Baawra1952_Mohd.Rafi _Shakeel Badayuni_Naushad..a tribute

Man Tadapat Hari Darasan Ko Aaj,
More Tum Bin Bigade Sakal Kaaj
Aa, Vinatee Karat, Hoon, Rakhiyo Laaj, Man Tadapat,
Man Tadapat Hari Darasan Ko Aaj,
More Tum Bin Bigade Sakal Kaaj

Tumhare Dvaar Ka Main Hoon Jogee
Hamaree Or Nazar Kab Hogee
Sun More Vyaakul Man Kee Baat, Tadapat Haree Darasan,
Man Tadapat Hari Darasan Ko Aaj,
More Tum Bin Bigade Sakal Kaaj

Bin Guroo Gyaan Kahaan Se Paoon
Deejo Daan Haree Gun Gaoon
Sab Gunee Jan Pe Tumhaara Raaj, Tadapat Haree,
Man Tadapat Hari Darasan Ko Aaj,
More Tum Bin Bigade Sakal Kaaj

Muralee Manohar Aas Na Todo
Dukh Bhanjan More Saath Na Chhodo
Mohe Darasan Bhiksha De Do Aaj De Do Aaj
Man Tadapat Hari Darasan Ko Aaj,
More Tum Bin Bigade Sakal Kaaj
घूँघट का पट खोल रे,
तोहे पिया मिलेंगे।

घट घट रमता राम रमैया,
कटुक बचन मत बोल रे॥

रंगमहल में दीप बरत है,
आसन से मत डोल रे॥

कहत कबीर सुनो भाई साधों,
अनहद बाजत ढोल रे॥
राम बिनु तन को ताप न जाई।
जल में अगन रही अधिकाई॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥

तुम जलनिधि मैं जलकर मीना।
जल में रहहि जलहि बिनु जीना॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥

तुम पिंजरा मैं सुवना तोरा।
दरसन देहु भाग बड़ मोरा॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥

तुम सद्गुरु मैं प्रीतम चेला।
कहै कबीर राम रमूं अकेला॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥
हरि तुम हरो जन की भीर,
द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढ़ायो चीर॥

भगत कारण रूप नरहरि धर्‌यो आप सरीर ॥
हिरण्यकश्यप मारि लीन्हो धर्‌यो नाहिन धीर॥

बूड़तो गजराज राख्यो कियौ बाहर नीर॥
दासी मीरा लाल गिरधर चरणकंवल सीर॥

Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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