
भोले तेरी भक्ति का अपना ही
भजन बिना नर फीको
आज मोहिं लागे वृन्दावन नीको॥
घर-घर तुलसी ठाकुर सेवा दरसन गोविन्द जी को॥१॥
रतन सिंघासण आपु बिराजैं मुकुट धर।ह्यो तुलसी को॥२॥
कुंजन कुंजन फिरत राधिका सबद सुणत मुरली को।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर भजन बिना नर फीको॥३॥
मीरा बाई के इस पद में वे वृंदावन की महिमा का वर्णन करती हैं, जहां प्रत्येक घर में तुलसी की पूजा होती है और गोविंदजी के दर्शन होते हैं। यमुना का निर्मल जल बहता है, और भोजन में दूध-दही की प्रचुरता है। भगवान स्वयं रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान हैं, उनके मुकुट में तुलसी की माला सुशोभित है। राधिका कुंज-कुंज में विचरण करती हैं, और मुरली की मधुर ध्वनि सुनाई देती है। मीरा कहती हैं कि उनके प्रभु गिरधर नागर के भजन के बिना मनुष्य का जीवन फीका है।
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