भजन बिना नर फीको आज मोहिं लागे वृन्दावन
भजन बिना नर फीको आज मोहिं लागे वृन्दावन नीको
भजन बिना नर फीको
आज मोहिं लागे वृन्दावन नीको॥
घर-घर तुलसी ठाकुर सेवा दरसन गोविन्द जी को॥१॥
निरमल नीर बहत जमुना में भोजन दूध दही को।
रतन सिंघासण आपु बिराजैं मुकुट धर।ह्यो तुलसी को॥२॥
कुंजन कुंजन फिरत राधिका सबद सुणत मुरली को।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर भजन बिना नर फीको॥३॥
मीरा बाई के इस पद में वे वृंदावन की महिमा का वर्णन करती हैं, जहां प्रत्येक घर में तुलसी की पूजा होती है और गोविंदजी के दर्शन होते हैं। यमुना का निर्मल जल बहता है, और भोजन में दूध-दही की प्रचुरता है। भगवान स्वयं रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान हैं, उनके मुकुट में तुलसी की माला सुशोभित है। राधिका कुंज-कुंज में विचरण करती हैं, और मुरली की मधुर ध्वनि सुनाई देती है। मीरा कहती हैं कि उनके प्रभु गिरधर नागर के भजन के बिना मनुष्य का जीवन फीका है।
भजन बिन नर मरघट के भूत/Bhajan bin nar marghat ke bhoot/Indresh Upadhyay #yt #bhaktipath #indreshji
प्रभु की भक्ति के बिना जीवन नीरस और अधूरा है। वृंदावन की वह पावन धरती, जहाँ हर कण में प्रभु का नाम गूँजता है, मन को सच्चा सुख देती है। जैसे कोई प्यासा नदी के तट पर पहुँचकर तृप्त होता है, वैसे ही भक्त का हृदय प्रभु के दर्शन और उनके भजन में डूबकर पूर्णता पाता है। यह भक्ति ही वह रंग है, जो जीवन को जीवंत और अर्थपूर्ण बनाती है।
घर-घर में तुलसी की सेवा और गोविंद के दर्शन का भाव हृदय को पवित्र करता है। यह सेवा केवल रस्म नहीं, बल्कि उस प्रेम का प्रतीक है, जो हर कार्य को प्रभु को समर्पित करता है। जमुना का निर्मल जल, दूध-दही का भोजन, और रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजे प्रभु की छवि—ये सभी उस सादगी और भव्यता के प्रतीक हैं, जो भक्ति में एक साथ बसती है। प्रभु का यह रूप मन को मोह लेता है, और उसे सदा उनकी स्मृति में डुबोए रखता है।
राधिका का कुंज-कुंज फिरना और मुरली की तान सुनना उस प्रेम की गहराई को दर्शाता है, जो भक्त को प्रभु के करीब लाता है। मुरली की धुन केवल संगीत नहीं, बल्कि आत्मा को जागृत करने वाला वह नाद है, जो मन को प्रभु की लीलाओं में खोने को मजबूर करता है। यह प्रेम और भक्ति का वह बंधन है, जो राधा और कृष्ण के युगल रूप में साकार होता है।
मीरा का अपने गिरधर के प्रति समर्पण उस सत्य को उजागर करता है कि भजन के बिना मनुष्य का जीवन फीका है। प्रभु का नाम, उनकी भक्ति, और उनकी स्मृति ही वह अमृत है, जो हृदय को सदा तृप्त रखता है। यह विश्वास कि प्रभु सदा साथ हैं, मन को हर दुख से मुक्त कर देता है, और जीवन को उनके प्रेम का एक अनंत गीत बना देता है।
घर-घर में तुलसी की सेवा और गोविंद के दर्शन का भाव हृदय को पवित्र करता है। यह सेवा केवल रस्म नहीं, बल्कि उस प्रेम का प्रतीक है, जो हर कार्य को प्रभु को समर्पित करता है। जमुना का निर्मल जल, दूध-दही का भोजन, और रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजे प्रभु की छवि—ये सभी उस सादगी और भव्यता के प्रतीक हैं, जो भक्ति में एक साथ बसती है। प्रभु का यह रूप मन को मोह लेता है, और उसे सदा उनकी स्मृति में डुबोए रखता है।
राधिका का कुंज-कुंज फिरना और मुरली की तान सुनना उस प्रेम की गहराई को दर्शाता है, जो भक्त को प्रभु के करीब लाता है। मुरली की धुन केवल संगीत नहीं, बल्कि आत्मा को जागृत करने वाला वह नाद है, जो मन को प्रभु की लीलाओं में खोने को मजबूर करता है। यह प्रेम और भक्ति का वह बंधन है, जो राधा और कृष्ण के युगल रूप में साकार होता है।
मीरा का अपने गिरधर के प्रति समर्पण उस सत्य को उजागर करता है कि भजन के बिना मनुष्य का जीवन फीका है। प्रभु का नाम, उनकी भक्ति, और उनकी स्मृति ही वह अमृत है, जो हृदय को सदा तृप्त रखता है। यह विश्वास कि प्रभु सदा साथ हैं, मन को हर दुख से मुक्त कर देता है, और जीवन को उनके प्रेम का एक अनंत गीत बना देता है।
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