दूर नगरी बड़ी दूर नगरी कैसे आऊं मैं तेरी
दूर नगरी बड़ी दूर नगरी कैसे आऊं मैं तेरी गोकुल नगरी
कैसे आऊं मैं तेरी गोकुल नगरी
दूर नगरी बड़ी दूर नगरी
रात को आऊं कान्हा डर माही लागे
दिन को आऊं तो देखे सारी नगरी। दूर नगरी॥।
सखी संग आऊं कान्हा शर्म मोहे लागे
धीरे-धीरे चलूं तो कमर मोरी लचके
झटपट चलूं तो छलका गगरी। दूर नगरी॥॥
मीरा कहे प्रभु गिरधर नागर
तुमरे दरस बिन मैं तो हो ग बावरी। दूर नगरी॥॥
दूर नगरी बड़ी दूर नगरी | Dur Nagri Re Badi Dur Nagri | Krishna Bhajan | Pamela Jain
प्रभु के दर्शन की चाह हृदय में ऐसी तड़प जगाती है, जो मन को सदा उनकी नगरी की ओर खींचती है। गोकुल की वह पावन धरती, जहाँ प्रभु की लीलाएँ बसी हैं, भक्त के लिए सबसे प्रिय तीर्थ है, पर यह दूरी केवल भौतिक नहीं, बल्कि मन की वह अवस्था है, जो प्रभु से मिलन को और व्याकुल बनाती है। जैसे कोई प्रेमी अपने प्रिय के पास पहुँचने को बेताब रहता है, वैसे ही भक्त का मन हर पल प्रभु के करीब होने की आस में थरथराता है।
रात का अंधेरा डराता है, दिन की भीड़ शर्मिंदगी लाती है। सखियों का साथ शर्म को बढ़ाता है, और अकेले चलने में राह भटकने का भय सताता है। यह केवल बाहरी बाधाएँ नहीं, बल्कि मन की वे उलझनें हैं, जो भक्त को प्रभु के मार्ग पर चलते हुए रोकती हैं। फिर भी, यह तड़प इतनी गहरी है कि न डर रुकने देता है, न शर्म ठहरने देती है।
चलने की गति, चाहे धीमी हो या तेज, हर कदम में प्रभु के प्रेम की गागर छलकती है। कमर का लचकना, गागर का छलकना—ये केवल शारीरिक नहीं, बल्कि उस प्रेम की अभिव्यक्ति हैं, जो मन को प्रभु के रंग में डुबोए रखता है। यह प्रेम इतना प्रबल है कि हर कठिनाई के बावजूद भक्त का मन प्रभु की ओर ही बढ़ता है।
मीरा की वह बावरी अवस्था, जहाँ प्रभु के दर्शन के बिना मन विचलित हो उठता है, उस प्रेम की पराकाष्ठा है, जो भक्त को प्रभु में समा जाने को आतुर करती है। यह तड़प, यह व्याकुलता, और यह समर्पण ही वह सेतु है, जो दूर की नगरी को पास लाता है। प्रभु का नाम, उनकी स्मृति, और उनकी भक्ति ही वह मार्ग है, जो मन को गोकुल की गलियों में ले जाकर सदा प्रभु के चरणों में ठहरने का सुख देता है।
Song : Dur Nagri Re Badi Dur Nagri
Album : Kanaiyo
Singer : Pamela Jain
Music: Appu
Label : Soor Mandir
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