म्हारो प्रणाम बांके बिहारी को मोर मुकुट

म्हारो प्रणाम बांके बिहारी को मीरा भजन

म्हारो प्रणाम बांके बिहारी को।
मोर मुकुट माथे तिलक बिराजे।
कुण्डल अलका कारी को म्हारो प्रणाम
अधर मधुर कर बंसी बजावै।

रीझ रीझौ राधा प्यारी को म्हारो प्रणाम
यह छबि देख मगन भ मीरा।
मोहन गिरवरधारी को म्हारो प्रणाम  
म्हारों प्रणाम बांके बिहारी को,
मोर मुकुट माथै तिलक बिराजै,
कुंडल अलका कारी को म्हारो प्रणाम
अधर मधुर कर बंसी बजावे,
रीझ रीझौ राधा प्यारी को म्हारों प्रणाम
यह छबि देख मगन भ मीरा।
मोहन गिरवरधारी को म्हारो प्रणाम।
 


Mharo Pranam by Kishori Amonkar; Raag Yaman Kalyan

प्रेम और भक्ति का सागर है, जहाँ मन बाँके बिहारी की छवि में डूब जाता है। मोर मुकुट और माथे पर तिलक की शोभा ऐसी कि हृदय स्वतः नमन को झुक जाता है। कानों में कुण्डल और काले केशों की लटें मन को मोह लेती हैं, जैसे सृष्टि का सौंदर्य एकमात्र उनके चरणों में समाया हो। अधरों पर बंसी की मधुर तान ऐसी कि आत्मा उस स्वर में खो जाए, और राधा का प्रेम उस तान में रीझ-रीझ कर नाच उठे। यह प्रेम नश्वर नहीं, अपितु अनंत है, जो राधा और मोहन के मिलन में साकार होता है। मीरा का मन उस छवि में मगन है, जैसे एक तपस्वी का चित्त ध्यान में लीन हो। गिरवरधारी की वह शक्ति, जो पर्वत को अंगुली पर उठा ले, वही करुणा बनकर भक्त के हृदय को सहारा देती है। यह भक्ति का मार्ग है, जहाँ सौंदर्य, प्रेम और शक्ति का संगम मन को परम सत्य की ओर ले जाता है।

Interpretation:
My Respects To Banke Bihari, Who Has A Crown Of Peacock-feathers,
A Tilaka Mark On The Forehead And Locks Of Hair Hanging Over His Earring Hoops.
With His Sweet Lips He Holds And Plays The Flute
And Playfully Entices His Dear Radha.
This Image Captivates Meera—this Image Of Mohana,
Who Lifted Govardhana Mountain
इस भजन में मीरा बाई भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और प्रेम का वर्णन करती हैं। वह कृष्ण को बांके बिहारी नाम से संबोधित करती हैं, जो उनके कान्हा रूप का प्रतीक है।

मीरा बाई कृष्ण को अपना प्रणाम करती हैं। वह कृष्ण के रूप का वर्णन करती हैं, जिनके सिर पर मोर मुकुट और माथे पर तिलक है। उनके कान में कुंडल अलका कारी हैं और उनके मुख से मधुर बंसी की ध्वनि निकल रही है। मीरा बाई कृष्ण की पत्नी राधा को भी अपना प्रणाम करती हैं। वह राधा को कृष्ण का प्यारी मानती हैं और उनसे भी प्रेम करती हैं।

Born On April 10, 1931, She Is A Noted Indian Classical Vocalist, Who Sings Khyal In The Jaipur-atrauli Gharana Style. According To Wikipedia, She Has Developed Her Own Style Which Emphasizes The Emotional Content Of Musical Notes While Maintaining The Rigor Of The Jaipur "Gaayaki" (Singing Style). Music Critic Vamanrao Deshpande, Who Was Also Her Guru-bandhu, Had Hailed Her As One Of The Greatest Artists Of 20th Century. She Has Dabbled More In Lighter Forms Of Music Than The Earlier Generations Of Jaipur Gharana Musicians.
 
Mharo pranaam Banke Bihari ji
Mharo pranaam

Mor mukut mathya tilak biraja
Kundal alaka kari ji
Mharo pranaam Banke Bihari ji

Adhar madhur dhar bansi bajav
Ri jhiri jhawa braj nari ji
Mharo pranaam Banke Bihari ji

Ya chhab dekhya mohya Meera
Mohan giriwardhari ji
Mharo pranaam Banke Bihari ji
 
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