बन्सी का बजाना छोड़ दे रे नन्द मेहर
बन्सी का बजाना छोड़ दे रे नन्द मेहर के लाल
बन्सी का बजाना छोड़ दे रे नन्द मेहर के लाल |तेरी बन्सी रस की भीनी बाजे मधुर रसाल
सुन-सुन सारी ब्रज की नारी भूल गईं घर-माल ||
बन में जाते धेनु चराते मोह लिए सब ग्वाल
दूध बेचन को जात गुजरियाँ रोक लईं तत्काल ||
पक्षी मौन हुए पशुओं ने तजा चरन का ख्याल
ध्यान छुटा मुनियों का वन में सुन मुरली निरधार ||
मोर-मुकुट पीताम्बर सोहे, गल वैजंती माल
ब्रहमानन्द की सुन लो विनती दे दो दरस दयाल ||
Mansur Valera - bhajan Bansi ka bajana chhor de
सुंदर भजन में श्रीकृष्णजी की बंसी की मधुर धुन की ऐसी महिमा गूँजती है, जो सारे वृंदावन को मोह लेती है। यह वह रस भरी पुकार है, जो प्रभु की बंसी को इतना मधुर बताती है कि सुनने वाला सब कुछ भूल जाता है। ब्रज की नारियाँ, ग्वाल, और गुजरियाँ तक इसके रस में डूबकर घर-माल और काम-धाम छोड़ देती हैं। यह प्रेम का वह जादू है, जो हर हृदय को श्रीकृष्णजी के रंग में रंग देता है।
पक्षियों का मौन होना, पशुओं का चरना भूलना, और मुनियों का ध्यान टूटना बंसी की उस अलौकिक शक्ति को दर्शाता है, जो सृष्टि को ठहरा देती है। जैसे कोई विद्यार्थी किसी गहरे सत्य को सुनकर उसमें खो जाता है, वैसे ही यहाँ बंसी की धुन हर प्राणी को प्रभु की ओर खींच लेती है। यह वह शक्ति है, जो मन को संसार से परे ले जाकर प्रभु के चरणों में बाँध देती है।
पक्षियों का मौन होना, पशुओं का चरना भूलना, और मुनियों का ध्यान टूटना बंसी की उस अलौकिक शक्ति को दर्शाता है, जो सृष्टि को ठहरा देती है। जैसे कोई विद्यार्थी किसी गहरे सत्य को सुनकर उसमें खो जाता है, वैसे ही यहाँ बंसी की धुन हर प्राणी को प्रभु की ओर खींच लेती है। यह वह शक्ति है, जो मन को संसार से परे ले जाकर प्रभु के चरणों में बाँध देती है।
यह भजन भी देखिये