जो भजे हरि को सदा सो परम पद पायेगा
जो भजे हरि को सदा सो परम पद पायेगा
जो भजे हरि को सदा सो परम पद पायेगा जो भजे हरि को सदा
जो भजे हरि को सदा सो परम पद पायेगा .
देह के माला तिलक और भस्म नहिं कुछ काम के .
प्रेम भक्ति के बिना नहिं नाथ के मन भायेगा
दिल के दर्पण को सफ़ा कर दूर कर अभिमान को .
खाक हो गुरु के चरण की तो प्रभु मिल जायेगा
छोड़ दुनिया के मज़े और बैठ कर एकांत में .
ध्यान धर हरि के चरण का फिर जनम नहीं पायेगा
दृढ़ भरोसा मन में रख कर जो भजे हरि नाम को .
कहत ब्रह्मानंद ब्रह्मानंद में ही समायेगा
जो भजे हरि को सदा सो परम पद पायेगा .
देह के माला तिलक और भस्म नहिं कुछ काम के .
प्रेम भक्ति के बिना नहिं नाथ के मन भायेगा
दिल के दर्पण को सफ़ा कर दूर कर अभिमान को .
खाक हो गुरु के चरण की तो प्रभु मिल जायेगा
छोड़ दुनिया के मज़े और बैठ कर एकांत में .
ध्यान धर हरि के चरण का फिर जनम नहीं पायेगा
दृढ़ भरोसा मन में रख कर जो भजे हरि नाम को .
कहत ब्रह्मानंद ब्रह्मानंद में ही समायेगा
Jo Bhaje Hari Ko Sada(जो भजे हरि को सदा, सोही परम पद पावेगा) - Bhimsen Joshi
Jo Bhaje Hari Ko Sada So Param Pad Paayega
Jo Bhaje Hari Ko Sada
Jo Bhaje Hari Ko Sada So Param Pad Paayega .
Deh Ke Maala Tilak Aur Bhasm Nahin Kuchh Kaam Ke .
Prem Bhakti Ke Bina Nahin Naath Ke Man Bhaayega
Dil Ke Darpan Ko Safa Kar Door Kar Abhimaan Ko .
Jo Bhaje Hari Ko Sada
Jo Bhaje Hari Ko Sada So Param Pad Paayega .
Deh Ke Maala Tilak Aur Bhasm Nahin Kuchh Kaam Ke .
Prem Bhakti Ke Bina Nahin Naath Ke Man Bhaayega
Dil Ke Darpan Ko Safa Kar Door Kar Abhimaan Ko .
हरिको नाम प्रेमसों जपिये, हरिरस रसना पीजै ।
हरिगुन गाइय, सुनिय निरंतर, हरि-चरननि चित दीजै ॥
हरि-भगतनकी सरन ग्रहन करि, हरिसँग प्रीति करीजै ।
हरि-सम हरि जन समुझि मनहिं मन तिनकौ सेवन कीजै ॥
हरि केहि बिधिसों हमसों रीझै, सो ही प्रश्न करीजै ।
हरि-जन हरिमारग पहिचानै, अनुमति देहिं सो कीजै ॥
हरिहित खाइय, पहिरिय हरिहित, हरिहित करम करीजै ।
हरि-हित हरि-सन सब जग सेइय, हरिहित मरिये जीजै ॥
यही वर दो मेरे राम / भजन
अर्थ न धर्म न काम रुचि, पद न चहहुं निरवान |
जनम जनम रति राम पद, यह वरदान न आन ||
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम
सिमरूँ निश दिन हरि नाम, यही वर दो मेरे राम ।
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥
मेरे राम, मेरे राम, मेरे राम, मेरे राम ।
मन मोहन छवि नैन निहारे, जिह्वा मधुर नाम उच्चारे,
कनक भवन होवै मन मेरा, जिसमें हो श्री राम बसेरा, or
कनक भवन होवै मन मेरा, तन कोसलपुर धाम,
यही वर दो मेरे राम |
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥
सौंपूं तुझको निज तन मन धन, अरपन कर दूं सारा जीवन,
हर लो माया का आकर्षण, प्रेम भगति दो दान,
यही वर दो मेरे राम |
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥
गुरु आज्ञा ना कभी भुलाऊँ, परम पुनीत राम गुन गाऊँ,
सिमरन ध्यान सदा कर पाऊँ, दृढ़ निश्चय दो राम !
यही वर दो मेरे राम,
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥
संचित प्रारब्धों की चादर, धोऊं सतसंगों में आकर,
तेरे शब्द धुनों में गाकर, पाऊं मैं विश्राम,
यही वर दो मेरे राम |
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥
नाम जपन क्यों छोड़ दिया
क्रोध न छोड़ा झूठ न छोड़ा
सत्य बचन क्यों छोड दिया
झूठे जग में दिल ललचा कर
असल वतन क्यों छोड दिया
कौड़ी को तो खूब सम्भाला
लाल रतन क्यों छोड दिया
जिन सुमिरन से अति सुख पावे
तिन सुमिरन क्यों छोड़ दिया
खालस इक भगवान भरोसे
तन मन धन क्यों ना छोड़ दिया
नाम जपन क्यों छोड़ दिया ॥
हरिगुन गाइय, सुनिय निरंतर, हरि-चरननि चित दीजै ॥
हरि-भगतनकी सरन ग्रहन करि, हरिसँग प्रीति करीजै ।
हरि-सम हरि जन समुझि मनहिं मन तिनकौ सेवन कीजै ॥
हरि केहि बिधिसों हमसों रीझै, सो ही प्रश्न करीजै ।
हरि-जन हरिमारग पहिचानै, अनुमति देहिं सो कीजै ॥
हरिहित खाइय, पहिरिय हरिहित, हरिहित करम करीजै ।
हरि-हित हरि-सन सब जग सेइय, हरिहित मरिये जीजै ॥
यही वर दो मेरे राम / भजन
अर्थ न धर्म न काम रुचि, पद न चहहुं निरवान |
जनम जनम रति राम पद, यह वरदान न आन ||
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम
सिमरूँ निश दिन हरि नाम, यही वर दो मेरे राम ।
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥
मेरे राम, मेरे राम, मेरे राम, मेरे राम ।
मन मोहन छवि नैन निहारे, जिह्वा मधुर नाम उच्चारे,
कनक भवन होवै मन मेरा, जिसमें हो श्री राम बसेरा, or
कनक भवन होवै मन मेरा, तन कोसलपुर धाम,
यही वर दो मेरे राम |
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥
सौंपूं तुझको निज तन मन धन, अरपन कर दूं सारा जीवन,
हर लो माया का आकर्षण, प्रेम भगति दो दान,
यही वर दो मेरे राम |
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥
गुरु आज्ञा ना कभी भुलाऊँ, परम पुनीत राम गुन गाऊँ,
सिमरन ध्यान सदा कर पाऊँ, दृढ़ निश्चय दो राम !
यही वर दो मेरे राम,
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥
संचित प्रारब्धों की चादर, धोऊं सतसंगों में आकर,
तेरे शब्द धुनों में गाकर, पाऊं मैं विश्राम,
यही वर दो मेरे राम |
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥
नाम जपन क्यों छोड़ दिया
क्रोध न छोड़ा झूठ न छोड़ा
सत्य बचन क्यों छोड दिया
झूठे जग में दिल ललचा कर
असल वतन क्यों छोड दिया
कौड़ी को तो खूब सम्भाला
लाल रतन क्यों छोड दिया
जिन सुमिरन से अति सुख पावे
तिन सुमिरन क्यों छोड़ दिया
खालस इक भगवान भरोसे
तन मन धन क्यों ना छोड़ दिया
नाम जपन क्यों छोड़ दिया ॥
प्रभु का स्मरण ही जीवन का परम ध्येय है। जो हर पल उनका नाम जपता है, वह मुक्ति का सर्वोच्च पद पाता है। देह पर माला, तिलक, भस्म का लेप बाहरी रंग हैं; बिना प्रेम और भक्ति के ये प्रभु को नहीं भाते। जैसे मैला दर्पण साफ करने पर चेहरा साफ दिखता है, वैसे ही मन का अभिमान मिटाकर हृदय को निर्मल करो।
गुरु के चरणों की धूल बन जाओ, तो प्रभु का सान्निध्य सहज मिलता है। संसार के सुख क्षणिक हैं; एकांत में हरि के चरणों का ध्यान धरो, तो जन्म-मरण का चक्र टूटता है। दृढ़ विश्वास के साथ हरि नाम का आलंबन लो, तो ब्रह्मानंद की लहरों में डूबकर आत्मा उसी में लीन हो जाती है। सच्चा भक्त वही, जो दुनिया की मोह-माया छोड़कर हरि भक्ति में रम जाता है।
गुरु के चरणों की धूल बन जाओ, तो प्रभु का सान्निध्य सहज मिलता है। संसार के सुख क्षणिक हैं; एकांत में हरि के चरणों का ध्यान धरो, तो जन्म-मरण का चक्र टूटता है। दृढ़ विश्वास के साथ हरि नाम का आलंबन लो, तो ब्रह्मानंद की लहरों में डूबकर आत्मा उसी में लीन हो जाती है। सच्चा भक्त वही, जो दुनिया की मोह-माया छोड़कर हरि भक्ति में रम जाता है।
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Author - Saroj Jangir
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