तुम मेरी राखो लाज हरि भजन
तुम मेरी राखो लाज हरि भजन
तुम मेरी राखो लाज हरि।
तुम जानत सब अन्तर्यामी,
करनी कछु ना करी।
तुम मेरी राखो लाज हरि।।
(अंतरा)
अवगुण मोसे बिसरत नाहिं,
पलछिन घड़ी घड़ी।
सब प्रपंच की पोट बाँधि कै,
अपने सीस धरी।
तुम मेरी राखो लाज हरि।।
(अंतरा)
दारा सुत धन मोह लिये हौं,
सुध-बुध सब बिसरी।
सूर पतित को बेगि उबारो,
अब मोरि नाव भरी।
तुम मेरी राखो लाज हरि।।
(पुनरावृत्ति)
तुम मेरी राखो लाज हरि।।
Tum Meri Rakho Laaj Hari - Live Concert | Jagjit Singh Bhajans
Tum Jaanat Sab Antaryaamee
Karanee Kachhu Na Karee
Tum Meree Raakho Laaj Hari
ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥
अधिष्ठान मेरा मन होवे।
जिसमे राम नाम छवि सोहे ।
आँख मूंदते दर्शन होवे
मेरे मन मन्दिर मे राम बिराजे।
ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥
सांस सांस गुरु मन्त्र उचारूं।
रोमरोम से राम पुकारूं ।
आँखिन से बस तुम्हे निहारूं।
मेरे मन मन्दिर मे राम बिराजे।
ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥
औषधि रामनाम की खाऊं।
जनम मरन के दुख बिसराऊं ।
हंस हंस कर तेरे घर जाऊं।
मेरे मन मन्दिर मे राम बिराजे।
ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥
बीते कल का शोक करूं ना।
आज किसी से मोह करूं ना ।
आने वाले कल की चिन्ता।
नहीं सताये हम को स्वामी ॥
मेरे मन मन्दिर मे राम बिराजे।
ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥
राम राम भजकर श्री राम।
करें सभी जन उत्तम काम ।
सबके तन हो साधन धाम।
ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥
मेरे मन मन्दिर मे राम बिराजे।
ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥
आँखे मूंद के सुनूँ सितार।
राम राम सुमधुर झनकार ।
मन में हो अमृत संचार।
ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥
मेरे मन मन्दिर मे राम बिराजे।
ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥
मेरे मन मन्दिर मे राम बिराजे।
ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥
जनम सफल हो जायेगा
गुरुदर्शन से बिन माँगे ही
कृपा राम की पायेगा
जनम सफ़ल हो जायेगा
गुरु चरनन में शीश झुका ले
चहु दिश गहन अन्धेरा छाया
पग पग भरमाती है माया
राम नाम की ज्योति जगेगी
अन्धकार मिट जायेगा
गुरु चरनन में शीश झुका ले
गुरु आदेश मान मन मेरे
ध्यान जाप चिन्तन कर ले रे
जनम जनम के पाप कटेंगे
मोक्ष द्वार खुल जायेगा
गुरु चरनन में शीश झुका ले
जन्म सफ़ल हो जायेगा
हृदय की पुकार में एकमात्र प्रभु की शरण है। वे अंतर्मन की हर गहराई को जानते हैं, जहाँ कोई कर्म नहीं, केवल विश्वास की याचना है। जैसे बच्चा माँ की गोद में बिना डर के सिर रखता है, वैसे ही भक्त अपनी लाज प्रभु के चरणों में रख देता है।
अवगुणों का बोझ हर पल मन को दबाता है, फिर भी प्रभु उसे अपने सिर पर ले लेते हैं। संसार की माया—स्त्री, पुत्र, धन—में उलझकर मन सुध-बुध खो बैठता है। जैसे भँवर में फँसी नाव किनारे की तलाश में तड़पती है, वैसे ही पतित आत्मा प्रभु से उद्धार माँगती है। उनकी कृपा ही वह रस्सी है, जो डूबते को किनारे तक ले जाती है। सच्चा भक्त वही, जो सब कुछ छोड़कर केवल प्रभु की शरण में अपनी लाज माँगता है।
Song Name - Tum Meri Rakho Laaj Hari
Singer - Jagjit Singh
Lyrics - Surdas
Music Composer - Jagjit Singh
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Author - Saroj Jangir
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