जय जय श्री शनीदेवा | पद्मकर शिरी ठेवा
आरती ओवाळतो | मनोभावे करुनी सेवा,
सुर्यसुता शनिमूर्ती | तुझी अगाध कीर्ति
एकमुखे काय वर्णू | शेषा न चले स्फुर्ती,
आरती ओवाळतो | मनोभावे करुनी सेवा,
सुर्यसुता शनिमूर्ती | तुझी अगाध कीर्ति
एकमुखे काय वर्णू | शेषा न चले स्फुर्ती,
जय जय श्री शनीदेवा | पद्मकर शिरी ठेवा
आरती ओवाळतो | मनोभावे करुनी सेवा,
सुर्यसुता शनिमूर्ती | तुझी अगाध कीर्ति
एकमुखे काय वर्णू | शेषा न चले स्फुर्ती,
नवग्रहांमाजी श्रेष्ठ | पराक्रम थोर तुझा,
ज्यावरी कृपा करिसी | होय रंकाचा राजा,
विक्रमासारिखा हो | शककरता पुण्यराशी,
आरती ओवाळतो | मनोभावे करुनी सेवा,
सुर्यसुता शनिमूर्ती | तुझी अगाध कीर्ति
एकमुखे काय वर्णू | शेषा न चले स्फुर्ती,
नवग्रहांमाजी श्रेष्ठ | पराक्रम थोर तुझा,
ज्यावरी कृपा करिसी | होय रंकाचा राजा,
विक्रमासारिखा हो | शककरता पुण्यराशी,
गर्व धरिता शिक्षा केली | बहु छळीयेले त्यासी,
शंकराच्या वरदाने | गर्व रावणाने केला,
साडेसाती येता त्यासी | समूळ नाशासी नेला,
प्रत्यक्ष गुरुनाथ | चमत्कार दावियेला,
नेऊनि शुळापाशी | पुन्हा सन्मान केला,
ऐसे गुण किती गाऊ | धणी न पुरे गातां
कृपा करि दिनांवरी | महाराजा समर्था,
दोन्ही कर जोडनियां | रुक्मालीन सदा पायी
प्रसाद हाची मागे | उदय काळ सौख्यदावी,
जय जय श्री शनीदेवा | पद्मकर शिरी ठेवा
आरती ओवाळीतो | मनोभावे करुनी सेवा,
शनि देव की आरती
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनि देव....
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनि देव....
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनि देव....
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनि देव....
जय जय श्री शनि देव....
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।
जय जय श्री शनि देव....
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श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनि देव....
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनि देव....
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनि देव....
जय जय श्री शनि देव....
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।
जय जय श्री शनि देव....
Author - Saroj Jangir
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